खेल
भारतीय हॉकी को लगे पंख,रचा इतिहास.टीम की जीत पर पूर्व डीएसए कैप्टन ने क्या कहा.आइये पढ़ते हैं @हिलवार्ता
भारत का ओलंपिक में 41 साल बाद पदक लेकर आना अपने आप पर गर्व करने लायक है क्योंकि हाकी हमारा राष्ट्रीय खेल है । ओलंपिक में भारत के अब तक के सफर में जीते पदकों में सर्वाधिक हॉकी की बदौलत ही अपनी झोली में आए हैं । गोल्डन सफर में चली टीम ने कड़ी मेहनत की और तीसरा स्थान पाकर हाकी के स्वर्णिम दिनों की नींव डाल दी है । जिसे आगामी समय तक बरकरार रखने के लिए खेल नीति की महती भूमिका होगी । अब तक क्रिकेट के पीछे भाग रहे देश को सोचने का समय है कि हमें किन किन खेलों के लिए अभी से तैयारी करनी है ।
हॉकी की पुरुष और महिला टीम ने अथक मेहनत से इस मुकाम को हासिल किया है जिसका पिछले तीन दशक से इंतजार था । अन्य खेलों में भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन एक सवाल हमेशा की तरह बना रहेगा कि बिगत ओलंपिक्स में जिन प्रतियोगिताओं में हमारे खिलाड़ी गोल्ड मैडल लेकर आए उस प्रतिस्पर्धा में हम आखिरी पायदान तक चले गए उदाहरण शूटिंग का है । वर्ष में शूटिंग में गोल्ड लाने वाले अभिनव बिंद्रा के पास गोल्डन अनुभव होने के वावजूद हम इस खिलाड़ी की प्रतिभा का फायदा अपने आने वाले खिलाड़ियों को नही दे पाए । इसी तरह अन्य पर्तिस्पर्धा के चैम्पियंस को खेल बोर्डों में कोई जगह नही है । उनकी जगह राजनीतिक दलों के लोगों को बैठाने का खामियाजा देश को भुगतना होता है यह साफ है ।
भारतीयों हॉकी खिलाड़ियों के प्रदर्शन से एक उम्मीद जगी है कि अगर सही तरीके से हॉकी ख़िलाड़ियाँ को सुविधाएं दी जाएं स्कूल स्तर से खेल के प्रति जागरूकता पैदा की जाए तो आने वाले समय मे भारत एक बार फिर अपना परचम लहरा सकता है
भारतीय हॉकी के प्रदर्शन से देश भर में सकारात्मकता का प्रचार हुआ है नैनीताल डीएसबी कैम्पस में 1961-62 में हॉकी के कैप्टन रहे 81 वर्षीय पूर्व हॉकी खिलाड़ी उमेश चंद्र लोहानी टीम के प्रदर्शन से खुश हैं । कहते हैं विश्व पटल पर भारत की पहचान हाकी ने ही करवाई हमने स्वर्णिम दौर देखा है जब लोगों में इस खेल के प्रति जबरदस्त जुनून था जितनी भीड़ आज क्रिकेट के लिए जुटती है उससे कई गुना दर्शक समर्थक हॉकी को मिलते थे । देशभर में अलग अलग क्लबों के बीच मुकाबले आम थे । लोहानी कहते हैं कि तब कारपोरेट जगत हाकी के खिलाड़ियों को बहुत प्रोमोट करता था जो धीरे धीरे क्रिकेट की तरफ मुड़ गया जबकि राष्ट्रीय खेल के लिए अधिक झुकाव होना चाहिए । कई बार प्रादेशिक स्तर की टीमो के कैप्टन और उम्दा लेफ्ट आउट खिलाड़ी लोहानी इंडियन सेंटर हाफ रामअवतार, फुलबैक कुलदीप सिंह के साथ खेल अभ्यास कर चुके हैं ।
डीएसए नैनीताल के पूर्व कैप्टन भारत की उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर अपने खेल को ऊँचाई पर देखना बड़ा सकून देता है । उन्हें भरोसा है कि वर्तमान भारतीय टीम उचित प्रशिक्षण और अपने जज्बे से भारत को पुनः 2024 में विश्व विजेता बना सकती है ।
हिलवार्ता स्पोर्ट्स डेस्क