पर्यटन
तराई भाभर में वन्यजीव ही नहीं घरेलू मवेसियों की भी प्यास नहीं बुझ रही, ग्राउंड रिपोर्ट पढ़िए @ हिलवार्ता
वृहस्पतिवार 6 जून 2019 की शाम को आई ऑधी और उसके साथ हुई बारिश के बाद भाबर के जंगलों में छोटे – छोटे पानी के तालाब बन गए हैं । जो भीषण गर्मी और जंगलों में लगी आज के बीच वन्य जीवों व जंगल में घा चरने के लिए भेजे जाने वाले पालतू मवेशियों के लिए एक वरदान की तरह है । कल 7 जून को हल्द्वानी से चोरगलिया के खनवाल कटान गॉव जाते हुए नंधौर रेंज के जंगल में कुछ स्थानों पर घरेलू जानवरों को अपनी प्यास बाने के लिए कीचड़ युक्त पानी पीते हुए देखा । उस पानी को पीने के लिए भी जानवरों में होड़ मच रही थी । इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गर्मी के भीषण दिन वन्य जीवों व जंगल जाने वाले पालतू मवेशियों कम कितने कष्ट भरे होते हैं । उन्हें अपनी प्यास बुझाने के लिए मीलों जंगल में चलना पड़ता है ।
इस दौरान इन पशुओं को अपने भोजन से ज्यादा आवश्यक अपनी प्यास बुझाना हो जाता है । ऐसे में जंगल में लगने वाली आग इनके लिए और मुसीबत लेकर आती है , क्योंकि आग लगने से घास व चारा – पत्ती तो जल ही जाती है , साथ ही पानी के छोटे – छोटे कुंड, तालाब, श्रोत तक भी सूख जाते हैं । इस स्थिति में वन्य जीवों को अपना जीवन बचाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता होगा समझा जा सकता है ,सोचकर ही भयंकर गर्मी में भी शरीर में कँपकँपी छूट जाती है। जिन लोगों के ऊपर जंगल को आग से बचाने सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है ,वे कैसे जंगल मे आग लगता देख लेते हैं ? यह एक गम्भीर मानवीय संवेदना से भरा प्रश्न है । क्या इन लोगों को अपनी जिम्मेदारी का जरा भी अहसास है ? क्या इनकी संवेदनाएँ पूरी तरह से कुंद चुकी हैं ? नंधौर रेंज के साल,सीगौन, शीशम आदि के जंगलों में इन प्रजातियों के पेड़ों के अलावा आजकल छोटे छोटे पत्ति वाले वृक्ष ,घास -फूस का दूर-दूर तक कहीं कोई नामोनिशान नहीं है ।
जो भी छोटे -छोटे पोखर परसों 6 जून की ऑधी , बारिश के बाद जंगल में बने हैं ,उनका पानी भी दो -चार दिन से अधिक रहने वाला नहीं है । ऐसे में अपने पशुओं को घास चरने के लिए जंगल में भेजने वाले लोगों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि जब उनके जानवर शाम को घर लौटें तो उन्हें पानी अवश्य पिलाएँ । यूँ गोठ में उन्हें उनके खूँटे से न बॉध दें । हो सकता है कि उन्हें जंगल में दिन भर अपनी प्यास बुझाने लायक पानी ही न मिला हो और सवेरे जंगल भेजते समय भी उन्हें एक बार अवश्य पानी पिलाएँ ,ताकि वह जंगल में अपनी प्यास बुझाने के लि ए मीलों न भटके । पहले भाबर के हर गॉव के हर घर में एक पोखर अवश्य ही होता था । जिसमें जंगल घास चुगने के लि ए जाने वाले जानवर आते – जाते समय अपनी मर्जी से पानी पी लिया करते थे , पर कथित विकास की अंधी सरकारी दौड़ ने हमले भाबर के कई हजार पोखर एक ही झटके में छीन लिए ।
उन कच्चे पोखरों की जगह अब सीमेंट- कंक्रीट से बने पक्के टेंंक ( स्थानीय भाषा में डिग्गियॉ ) बन गए हैं , जो हमारी सरकारों के विकास के ऑकड़ों को कागजों में बहुत मजबूती प्रदान करते हैं और इसी तरह के कागजी विकास के ऑकड़ों के आधार पर हमारे देश व राज्यों में सरकारें बनती व सत्ता से बाहर होती रहती हैं ।
कथित विकास के इस ढॉचे में हमारे पालतू मवेशियों से अपनी मर्जी के आधार पर उनसे पीने के पानी का नैसर्गिक अधिकार भी छीन लिया है , जो बहुत ही चिंताजनक व अमानवीय कृत्य है । विकास के इसी तरह के तथाकथित मॉडलों से हम अपने लिए विनाश के बीज बो रहे हैं , जिसकी भयानक कीमत हमारी आने वाली नश्लों को अवश्य ही भोगनी पड़ेगी । ***
जगमोहन रौतेला
वरिष्ठ पत्रकार की रिपोर्ट
@hillvarta.com
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