पर्यटन
Special report :उत्तराखंड के मूल स्वरूप को बचाए रखने के लिए Sustainable और Responsible टूरिस्म की जरूरत, एक्सपर्ट ने कहा ऐसे तो जल्द सबकुछ बर्बाद हो जाएगा,पढ़ें खबर@हिलवार्ता
‘उत्तराखंड में रिस्पांसिबल टूरिज्म की वकालत शुरू हो गई है हालिया कोविड के बाद जिस तरह की भीड़ उत्तराखंड में आई है उससे राज्य की प्राकृतिक संसाधनों पर विपरीत असर पड़ा ही है पर्यावरण के लिए भी खासा दिक्कतें पैदा हुई हैं राज्य की नदियों जंगलों में जहां टनों कूड़ा पहुचा है वहीं लाखों वाहनों की आवाजाही से जाम से राज्य के आम जन जीवन पर भी असर देखा गया है ।
राज्य में पर्यटन को लेकर बहसें होनी चाहिए लोगों की संस्कृति और रोजमर्रा की जिंदगी में बिना फर्क पड़े पर्यावरण सम्मत टूरिस्म की वकालत आवश्यक है । इसी क्रम में देहरादून स्थित एक रेस्टोरेंट में हुई बैठक में रिस्पांसिबल टूरिज्म की जरूरत पर जोर दिया। साथ ही कैयरिंग कैपेसिटी, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, संस्कृति, पर्यावरण, कचरा प्रबंधन और पलायन जैसे मसलों पर चर्चा बैठक में चर्चा का विषय रही ।
चर्चा में शामिल वैली ऑफ वर्ड फेस्टिवल के डायरेक्टर और आईएएस एकेडमी के पूर्व निदेशक संजीव चोपड़ा का कहना था कि जब हम टूरिज्म की बात करते हैं तो उसके साथ ही हमें अपनी संस्कृति की भी बात करनी होगी। टूरिज्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार का एक बड़ा माध्यम है । हम इसके जरिये अपनी परंपराओं, अपने खानपान और अपने उत्पादों को दूसरे समुदायों तक पहुंचा सकते हैं। इसके लिए टूरिज्म के जुड़े सभी हितधारकों को जिम्मेदारी उठाकर रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म पर काम करना होगा। भूटान और अन्य देशों का उदाहरण देते हुए उन्होंने रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म के अलग-अलग मॉडल की वकालत की।
इंडो गंगा हॉलिडेज की मैनेजिंग डायरेक्टर और एवेंचर टूरिज्म की प्रैक्टिसनर किरन भट्ट टोडरिया ने ऋषिकेश में पिछले 30-35 वर्षों में लगातार बढ़ीं राफ्टिंग और पर्यटन गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। उनका कहना था कि पर्यटन के माध्यम से हमारे राज्य को आर्थिक लाभ बेशक हुआ हो, लेकिन इसके लिए हमें अपने पर्यावरण और अपनी संस्कृति को दांव पर लगाना पड़ा है । उन्होंने इस क्षेत्र के सभी ऑपरेटर्स को पर्यावरण और संस्कृति के प्रति संवेदनशील बनाने की बात कही। उन्होंने राज्य की अन्य नदियों में भी राफ्टिंग गतिविधियां शुरू करने की बात कही।
इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट के प्रिंसिपल डॉ. जगदीप खन्ना का कहना था कि राज्य में होम स्टे पॉलिसी में और स्पष्टता लाने की जरूरत है। पर्यटन के माध्यम से संस्कृति के और खानपान के प्रचार-प्रसार के साथ ही उन्होंने टिहरी झील में पर्यटन की असीम संभावनाओं का इस्तेमाल करने की जरूरत बताई। उनका कहना था कि यदि हमें रिस्पॉन्सिबल टूरिज्म की तरफ बढ़ना है तो कैरिंग कैपेसिटी, स्टडी और प्री-प्लानिंग पर ध्यान देना होगा।
चेयर उत्तराखंड चैप्टर – पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के हेमंत कोचर ने टूरिज्म के 12 अलग-अलग मॉडल्स की चर्चा करते हुए उनमें और शोध और सुधार की जरूरत बताई। उनका कहना था कि हमें इस बात पर शोध करना होग कि किस तरह के टूरिस्ट उत्तराखंड आ रहे हैं, वे हमें क्या दे रहे हैं और यहां से क्या लेकर जा रहे हैं। उनका कहना था टूरिस्ट पर कंट्रोल न होने के कारण राज्य में कई टूरिस्ट मनमानी पर उतर आते हैं। बढ़ते ट्रैफिक पर भी उन्होंने चिन्ता जताई। इससे निपटने के लिए उन्होंने पर्यटन में विविधता लाने और नये पर्यटन स्थल विकसित करने की बात कही। साथ ही कचरा प्रबंधन को लेकर सुझाव दिये। उनका कहना था कि राज्य में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को सस्टेनेबल टूरिज्म और एसडीजी गोल्स के बारे में ट्रैनिंग देने की जरूरत है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने नीति आयोग द्वारा वर्ष 2018 में जारी सस्टेनबल टूरिज्म इन इंडियन हिमालयन रीजन रिपोर्ट के अलग-अलग पहलुओं पर जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के सस्टेनेबल टूरिज्म क्राइटएरिया, पर्यावरण मंत्रालय की अक्टूबर 2021 की ईको टूरिज्म पॉलिसी और उत्तराखंड टूरिज्म ड्राफ्ट पॉलिसी 2020 का जिक्र किया। उन्होंने आंकड़ों के माध्यम से चारधाम यात्रा के साथ ही इसी महीने संपन्न हुए पूर्णागिरी मेले, कैंचीधाम मेले और गंगा दशहरा मेेले में आये तीर्थयात्रियों की संख्या के आधार पर पर्यटन के रेस्पॉनसीबल मॉडल के बारे में जानकारी दी ।
पॉलिसी डायलॉग में शामिल लोगों में मुख्य रूप से हुडको रीजनल मैनेजर संजय भार्गव, प्रथम संस्था के परमजीत सिंह, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स के विशाल काला, वैली कल्चर के रॉबिन नागर, शिखा प्रकाश सहित कई अन्य लोग शामिल रहे ।
हिलवार्ता न्यूज डेस्क