राष्ट्रीय
काशीसिंह ऐरी ,दिवाकर भट्ट से नाराज बुधानी ने यूकेडी छोड़ भाजपा का दामन थामा ,मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भाजपा ज्वाइन कराई , आइये देखें क्या हुआ।
यूकेडी की दूसरी लाइन के नेता जगदीश बुधानी ने आज पूर्व अध्यक्ष काशी सिह ऐरी और दिवाकर भट्ट पर यूकेडी को अपनी जेब की पार्टी बना लेने का आरोप जड़ दिया उन्होंने दुखी मन से कहा कि उन्होंने 17 अगस्त 1987 को प्रदीप भंडारी के समक्ष यूकेडी की सदस्यता ग्रहण की 1984 में कालेज के दिनों से ही वह यूकेडी के समर्थक रहे हैं, बुधानी ने बताया कि उन्होंने पिछले 33 साल पार्टी में रहने के दौरान किसी निजी महत्वाकाँक्षा के अपनी जवानी पार्टी के साथ लगा दी, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने कभी दूसरी लाइन के युवाओं को आगे बढ़ने ही नहीं दिया, केवल चार लोग अध्यक्ष बनते रहे,नया पांचवा कभी सोचा तक नहीं गया, कहते हैं तमाम कोशिशों के वावजूद “दल” अंदरूनी लड़ाई से बाहर नहीं आ सका, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने काशी सिंह ऐरी और दिवाकर भट्ट पर डालते हुए कहा कि नेता द्वय केवल खुद के आगे बढ़ने के सिवा पार्टी संगठन को आगे बढ़ाने से बचते रहे हैं, यही कारण है कि कई सक्रिय कार्यकर्ता धीरे धीरे पार्टी से अलग होते रहे, बुधानी कहते हैं निराश होकर उन्होंने आज भाजपा का दामन थाम लिया .लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार चुनाव में प्रतियाशी खड़ा नहीं कर पाने से निराश बुधानी कहते हैं कि एक हप्ते पहले तक उन्होंने कभी सोचा भी नहीं कि वह 33 साल पुरानी पार्टी छोड़ देंगे,बुधानी कहते हैं कि नैनीताल और टिहरी लोकसभा के लिए कैंडिडेट तय नहीं कर पाना उनके गले नहीं उतरा, कार्यकारी अध्यक्ष भट्ट से टिहरी से चुनाव लड़ने की बात दल की बैठक में हुई थी उन्होंने कहा कि भट्ट ने निजी कारण बता लड़ने से इनकार कर दिया, दो जगह प्रतियाशी नामांकन तक नहीं करा सके यह मेरे लिए घोर निराशा का समय था बुधानी ने कहा कि अल्मोड़ा में जब शीर्ष नेतृत्व निर्णय नहीं ले पाया,यहीं से उन्होंने मन बना लिया कि अब पार्टी में निर्णय लेने की छमता नही रही और युवाओं को कमान कभी मिलेगी नहीं,उनको कहीं और राजनीति करनी होगी इसके सिवा कोई चारा नहीं था।
भाजपा चुनने पर उन्होंने कहा कि उनके पास दो ही ऑप्सन थे एक कांग्रेस दूसरी भाजपा कांग्रेस की मसल पावर की राजनीति उनको रास नहीं थी तब भाजपा को चुनना एकमात्र विकल्प उनके लिए बचा था । बुधानी दो बार यूथ अध्यक्ष रहे, एक बार पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सहित कुमायूं विश्वविद्यालय में 2003 से 2009 फिर 2012 से 2015 सीनेट सदस्य,2016 से आज 2019 तक कार्यपरिषद के सदस्य रहे हैं ।
राजनीति के सबसे बुरे दौर से गुजर रही यूकेडी को बुधानी के जाने से कितना फर्क पड़ेगा यह नेतृत्व समझता होगा,लेकिन जिस तरह धीरे धीरे दूसरी लाइन के नेता यूकेडी छोड़ रहे हैं कारण जगदीश बुधानी जैसा कहते हैं, जरूरी नही वैसा ही हो,एक सवाल यह भी है कि बुधानी कार्यकारी अध्यक्ष रहे हैं फिर यह सब उन्हीं के सामने हुआ यह होने के बाद वो खुद निर्णय नही ले सके कि जिनकी वजह वो परेशानी जाहिर कर रहे हैं उनके खिलाफ़ कार्यवाही की जानी चाहिए थी, वजह जो भी रही हो जल्द सामने आ जायेगा , वर्षों से राजनीति कर रहे छेत्रीय दलों के सक्रिय कार्यकर्ता महत्वाकाँक्षा के चलते दल पर आरोप लगाने के बाद अन्य दलों ,भाजपा कांग्रेस में जा चुके हैं ।
लोकसभा 2019 के लिए उम्मीदवार तक तय नहीं कर पाना, यूकेडी के लिए संकट का मामला तो है, यह समर्थकों को निराश करने भी करता है ,राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले दल की नेतृत्व क्षमता इतनी कमजोर है,कि वह लोकसभा में कैंडिडेट नही उतार पाया, यूकेडी के हर लोकसभा छेत्र में अच्छे खासे समर्थक हैं, अब जब उम्मीदवार ही खड़े नहीं हैं यह समर्थकों के लिए धर्मसंकट है कि उनका मत किधर जाएगा ।
Hillvarta news desk ·