Connect with us

राष्ट्रीय

कौन कहता है आसमाँ में छेद नहीं होता, तबियत से एक कंकड़ उछाल के देखो यारो , आइये पढ़ते हैं क्या है माजरा …

सुशील बहगुणा एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार हैं,छुट्टियों में जब भी घर आते हैं, घूमने फिरने के दौरान भी आदतन जनसरोकारी मुद्दों को छू लेते हैं ऐसे ही एक मुद्दे पर अपनी वाल पर जनचेतना से जुड़ी एक खबर उन्होंने लिख भेजी है,उन्होंने उतराखण्ड के एक किसान से बातचीत की है उनके उत्पादन को देखा है,फल उत्पाद के माध्यम से कैसे आत्मनिर्भर बना जा सकता है,आइये पढ़ते हैं ……
ऐसे बागवान ही बचाएंगे अब.पिछले कुछ दिनों की छुट्टियां उत्तराखंड में बाग़ बगीचों के अध्ययन में बिताईं। कई कृषि विज्ञानियों से भी मिला। काफी कुछ नया सीखा और जाना। अन्त में ये विचार और पुष्ट हुआ कि उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों को अपनी सर्वाधिक शक्ति और संसाधन बाग़वानी पर ही लगानी होगी। उसे केंद्र में रखना होगा। खेती यहां के छोटे काश्तकारों के लिए मुफ़ीद नहीं है जबकि बाग़वानी उनकी किस्मत बदल सकती है। लेकिन लोगों को अब सरकार के भरोसे बैठने के बजाय खुद पहल करनी होगी। ऐसी ही एक शानदार शख़्सियत से शुक्रवार शाम चम्बा के पास कनाताल में मिलने का सौभाग्य मिला। खेतों में काम छोड़ उन्होंने हमसे मिलने का समय निकाला। उनके हाथों में लगी मिट्टी बता रही थी अपनी मिट्टी से उनका लगाव।
ये हैं मंगलानंद डबराल – 80 साल के बुज़ुर्ग जिन्होंने बाग़वानी के क्षेत्र में जो रोशनी दिखाई है उस पर हमारे ग्रामीण युवकों को चलना ही चाहिए, सीखना ही चाहिए। मंगलानंदजी ने कीवी फ्रूट की फसल बड़ी ही कामयाबी के साथ उगायी है ( ख़ास बात कीवी के फल को बंदर नहीं खाता क्योंकि ये बहुत खट्टा होता है। तोड़ने के बाद पकता है केले की तरह) यही नहीं कीवी, आड़ू, पुलम, खुबानी, सेब, अखरोट और कई सब्ज़ियों के साथ कई नए और शानदार प्रयोग किये हैं।
20 साल पहले वो खाड़ी देशों में नौकरी छोड़ घर लौटे और फिर खेती में ही रम गए। आज उत्तराखंड में बागवानी के क्षेत्र में उनका अलग काम और नाम है। अपने बेटों के साथ वो अपना ये काम और आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने बाग़वानी के साथ डिब्बाबंद अचार, चटनी और जूस का काम भी काफी आगे बढ़ा दिया है। उनकी कामयाबी इस बात की मिसाल है कि अगर थोड़ी मेहनत और ज़्यादा दिमाग़ लगाया जाए तो 20 से 50 हज़ार रु महीना आमदनी के लिए तो गांव छोड़ने की बिलकुल ज़रूरत नहीं पड़ेगी। और अगर चकबंदी हो जाये तो ये कोशिश और भी सार्थक साबित होगी।
बाग़वानी पलायन रोकने का भी एक अचूक उपाय साबित होगा। उत्तराखंड के कुछ युवाओं ने इस दिशा में पहल भी की है लेकिन इस पहल को क्रांति में बदलने के लिए हजारों युवकों को अपने खेतों में उतरना होगा। अगर सहकारी प्रयास किये जायें तो और बेहतर। हमारे पास मंगलानंद डबराल जैसे नायक हैं।

सुशील बहुगुणा
वरिष्ठ पत्रकार,
@hillvarta.com

Continue Reading
You may also like...

More in राष्ट्रीय

Trending News

Follow Facebook Page

Tags