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जिले के लाइसेंसी हथियार जमा, फिर भी गोली तमचें की बटें चल रही हैं बेखोफ , एक और पत्रकार पर हमला अस्पताल भर्ती , कहाँ हो सरकार ?

हल्द्वानी फिर एक बार क्राइम सिटी बनने की ओर अग्रसर है ? यह सवाल आमजन की जेहन में बार बार उठ रहा है 90 के समय में अराजकता लूट , मारपीट, गैंग बना आपराधिक घटना रोज की कहानी होती जा रही थी उस समय गौला खनन को लेकर कई हत्याएं हुई जो पुलिस के लिए सरदर्द बन गया ।
तत्कालीन पुलिस अधिकारी जिसमे श्री प्रमोद साह , कोतवाल सिंह ,अरविंद डांगी , महेंद्र सिंह सरीखे कई पुलिस अधिकारियों ने शहर को गुंडा तत्वों से निपटने में खूब मेहनत की । राज्य बनने के बाद यदा कदा छोटी बड़ी घटनाओं पर पुलिस घिरती दिखती है , आम जन मानते हैं कि पुलिस पर नेताओं का दबाव है , एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि शहर में नशे का कारोबार अचानक बढ़ा है जिसको रोकने में महकमा नाकाम साबित हो रहा है , इसका कारण बताते हुए उनका कहना था कि अगर किसी युवा को पुलिस गिरफ्तार भी कर ले तुरंत राजनीतिक हस्तक्षेप हो जाता है जिस कारण शहर में आपराधिक घटनाओं की आशंका बनी हुई है ।
लोहारियासाल मल्ला निवासी धर्मेंद्र कहते हैं कि इस बीच बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है बच्चे जो बाहर से पढ़ के आ रहे हैं किसी न किसी प्रकार के नशे की गिरफ्त में हैं उन पर घर और बाहर निगरानी की जरूरत ही नही उनकी प्रॉपर कॉउंसलिंग की जानी चाहिए ।
समाज सेवी रेवती कांडपाल ने बताया कि होली के दूसरे रोज दो नवयुवक नशे की हालत में उनके मुहल्ले नारायण नगर में उत्पात करने लगे स्थानीय महिलाओं जिनमे जानकी गुप्ता जया कर्नाटक और खस्टी रावत सहित कई महिलाओं ने उन्हें पकड़ आइंदा यहां नही आने की हिदायत दी । श्रीमती कांडपाल ने बताया कि उन्होंने कोशिश की कि उनसे नशे उपलब्ध करने वालों का नाम पता चल पाये लेकिन उन्होंने बताया ही नहीं ।
इसी सप्ताह हल्द्वानी में दो हमले हुए है पहले पत्रकार मोहन भट्ट हिमांशु जोशी व्यवसायी अब पत्रकार मनोज बोरा पर जिन्हें स्थानीय कृष्णा अस्पताल भर्ती किया गया है उनकी हालत स्थिर है ।
अल्मोड़ा में भी एक पत्रकार पर हमला हुआ है इन सभी घटनाओं के बाद पत्रकारों और नागरिकों में रोष है , चुनाव आचार संहिता लागू है लोगों के लाइसेंसी हथियार जमा हुये हैं , एक हप्ते में दो अवैध हत्यारों से हमले इस बात को समझा जा सकता है कि हल्द्वानी सुरक्षित नहीं है । नशे की ओर जा रहा युवा अगर आसानी से हथियारों की अवैध खेप के नजदीक चला गया यह उसके स्वयं और शहर के लिए खतरा है ।
सवाल बरकार है क्या इसे पुलिस की नाकामी माना जाए ? राजनीतिक संरक्षण में युवाओं को रोकने में पुलिस कतराती है ? जिस वजह अपराध पर नियंत्रण में पीछे हट रही है ? अचानक आसपास से पलायन के बाद शहर में जनसंख्या बढ़ी है कौन कहाँ कैसे आया किसकी क्या प्रष्ठभूमि है इसके लिए सत्यापन किया भी गया है लेकिन जिस तेजी से शहर में आबादी का दबाव बढ़ा है सत्यापन पीछे चला जाता है ।
पुलिस को जागरूक नागरिकों के साथ सामंजस्य बिठा, इस समस्या से निपटने के शिवा कोई चारा नहीं लगता । आम आदमी अमन का हिमायती है जिसकी सुरक्षा करने में अभी विभाग लाचार प्रतीत होता है  ।

Hillvarta news desk

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