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2019 चुनावी फिजा बदली दिख रही है। खासकर अल्मोडा पिथौरागढ़ संसदीय क्षेत्र में चुनावी शोर, डोर टू डोर के बजाय रोड तक ही सिमटा रह गया है। प्रत्याशी जहां नगरों तक ही जनसभा कर रहे है वहीं पार्टीयो के कार्यकर्ता भी पैदल चलने से बचकर सड़क के किनारे लगे क्षेत्रों तक ही प्रचार को प्राथमिकता दे रहे है। अल्मोडा सीट पिछले दस साल से आरक्षित होने के कारण लोकसभा चुनाव के दौरान यहां नैनीताल ,टेहरी, पौडी और हरिद्वार की तरह चुनावी गर्माहट कम देखने को मिलती है।
चम्पावत,पिथौरागढ,अल्मोड़ा व बागेश्वर जनपदों को मिलाकर बनी इस सीट में विषम भौगौलिक परिस्थितियों वाले दुर्गम और दुरुह इलाकों की तादाद भी अच्छी खासी है। आज भी पचास फीसदी से ज्यादा गांवों तक सीधा सडक संपर्क नही हो पाया है। मूलभूत सुविधाओं के टोटे के कारण पलायन की रफ्तार हर साल बढ़ जाती है। यही कारण है कि चुनाव के दौरान भी यहां के जन मन की बात सुनने वाला कोई नही होता है। स्थानीय चुनाव के बजाय लोकसभा चुनाव में सियासी चहल पहल कम है।भले ही पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं को घर घर संपर्क की हिदायत देते हैं वावजूद इसके प्रत्याशी व कार्यकर्ता पैदल चलने से बचते दिख रहे है। उपनगर कस्बे आदि तक सभा और रोड शो के जरिये जीत का आर्शीवाद ही एक मात्र जरिया है ,चंपावत जिले के कई जगह अभी चुनाव चिन्ह तक वोटर ने नहीं देखे हैं ।
चौकाने वाली बात यह है कि 11 अप्रैल को वोटिंग है और मात्र तीन दिन शेष है । परंतु कहीं कहीं तो चुनाव चिन्ह तक नही पुहचा है और मतदाताओं को कितने उम्मीदवार मैदान में है इसकी भी जानकारी नही हैं । मतदाताओं ने बताया कि 6 माह पूर्व संपन्न निकाय चुनाव के दौरान जहां पार्टी कार्यकर्ता और समर्थक एक दिन कई बार मतदाता की चौखट में माथा टेकते दिख रहे थे। उसके उलट इस चुनाव में तो राष्ट्रीय दलों के कार्यकर्ता और सपोटर नगर इलाकों में भी रस्मअदायगी करते दिख रहे है।नगरों के कई घरों में तो कोई वोट मांगने तक नही आया।
पहाड़ की इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस के चुनाव चिंह के इतर अन्य पार्टियों के चुनाव निशानों की जानकारी भी कम वोटरों को है।अलबत्ता फूल यानी कमल और हाथ निशान को हर मतदाता जानता है।इस बार तो नगरीय मतदाताओ ने भी भाजपा व कांग्रेस के ही प्रत्याशियों को देखा है अन्य तो महज बडे नगरों तक ही सिमटकर रह गए।
Dinesh pandey
Sr journalist
@hillvarta news
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