प्रदेश सरकार के गैरसैण में शीतकालीन सत्र पर मनाही के बाद सरकार का आज देहरादून में सत्र का दूसरा दिन है इधर गैरसैण में हरीश रावत ने अपने समर्थकों संग इसके विरोध में धरना दिया जिसकी मिश्रित प्रतिक्रिया आई है कुछ लोगों ने इसे सियासी ड्रामा तो कुछ लोगों ने इसे हरीश रावत की राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश के रूप में देखा, वहीं हरीश समर्थक कहते हैं आज भी अगर कोई नेता उत्तराखंड का हित कर सकता है वह हरीश रावत हैं उनका गैरसैण के लिए प्रेम है कि उन्होंने इस मुददे पर सरकार को घेरा है , आइये पूरा पढ़ते हैं ।
उत्तराखंड में एक तरफ विधानसभा का शीत कालीन सत्र चल रहा है दूसरी तरफ कांग्रेस नेता हरीश रावत अपने समर्थकों संग गैरसैण में धरना दे रहे हैं उन्होंने सरकार की दलील और सरकार की दलील में हां में हां कह चुकी अपनी पार्टी की ही नेता प्रतिपक्ष की राय के इतर गैरसैण जाकर ठीक शीतकालीन सत्र के दिन ही गैरसैण पहुचकर एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है। रावत ने सरकार से कहा कि जिस गैरसैण में उन्हें ठंड लगती है वहीं पहुँच वह ठंड और सरकार दोनो से मुकाबला करेंगे । रावत के साथ उनकी पार्टी के आधा दर्जन के करीब विधायक और इतने ही बड़े नेता सहित समर्थक पहुँचे । दूसरी तरफ कांग्रेस के अधिकतर विधायकों सहित प्रदेश अध्यक्ष सहित नेता प्रतिपक्ष देहरादून में डटे हैं । यानी आधी कांग्रेस देहरादून आधी गैरसैण । समझ नहीं आया यह रन कांग्रेस का था या अकेले हरीश रावत जी का ?उधर भाजपा पूरी की पूरी सरकार सहित विधानसभा में है इस मुददे पर अपना स्टैंड पहले ही तय कर चुकी तुम करते रहो हल्ला । अपने लोग देहरादून ही शीत सत्र पूरा करेंगे ।
हरीश रावत ने यू कहिए कांग्रेस से आगे निकल गैरसैंण को मुद्दा बनाकर सरकार की घेराबंदी कर यह कोशिश की है और यह जताने की कोशिश की है कि वह पहाड़ के नेता के तौर पर देखे जाएं, उनका यह सियासी दांव कि कांग्रेस का पर्वतीय राज्य की राजधानी गैरसैंण पर जो भी स्टैंड हो उनका व्यक्तिगत झुकाव गैरसैण के लिए है। लेकिन क्या जनता यह नही समझती कि इस सब का मकसद किस कदर ईमानदारीपूर्ण है । यह बात दीगर है कि ढाई साल मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने स्थायी राजधानी के लिए कोई बड़ा प्रयास नहीं किया जानकार मानते हैं कि भले ही हरीश रावत गैरसैण गैरसैण कर रहे हों लेकिन केवल शीतकालीन सत्र, और ग्रीष्मकालीन सत्र के लिए उनकी हुंकार सिर्फ राजनीतिक स्टंट मात्र है अच्छा होता वह सरकार को विधानसभा में ही रोकते वहा धरना देते, जानकर कहते हैं वह साफ साफ कहें कि कांग्रेस का स्टैंड सीधे तौर पर स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाना है । इस से वह खुलकर कभी नही कहते ?इस बीच खबर यह भी उड़ी कि उनका स्टैंड पहले यह है कि वर्तमान सरकार राजधानी की घोषणा करे, वरना तीन साल के भीतर कांग्रेस इस काम को करेगी। चाहे उन्होंनेे इस मुददे पर खुद चुप्पी साधे रखी ।
अब सवाल यह है कि हरीश रावत की बात को कांग्रेस की सहमति कहा जा सकता है ? जबकि उन्हीं की नेता प्रतिपक्ष गैरसैण पर कई बार विपरीत बयान दे चुकी हैं ,कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व का इस पर स्टैंड जानना जरूरी होगा। तीन साल बाद उत्तराखंड में चुनाव होंगे तो क्या गैरसैण के बहाने कांग्रेस सत्ता पाने का सपना देख रही है ?
गौतलब है कि गैरसैण राजनीति का शिकार होता आया है उसे सत्र नहीं स्थाई हल चाहिए और जनभावना भी यही कहती है। पहाड़ मैदान के समीकरणों में फस गया पर्वतीय राज्य अपनी राजधानी को कब देखेगा कोई नहीं जानता ? लेकिन यह तय है कि उसके नाम से उत्तराखंड में आने वाले समय मे ठंडी ,गरम बहसें होंगी लेकिन एक बात तय है इस तरह के सियासी ड्रामे गैरसैण को फायदा नही नुकसान ज्यादा पहुचाएंगे अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति हो तो गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाने की मुहिम को गंभीरता पूर्वक साधना
चाहिए इस धरने से पहले गैरसैण समर्थकों संग किसी तरह के संवाद वगैर क्या कोई रास्ता निकल पायेगा ? शीतकालीन सत्र पर ही कई सवाल है मसलन यह स्थाई राजधानी की राह में रोड़ा नहीं है ? खैर राज्य के बहुसंख्य लोगों को लगता है कि गैरसैण सियासी ड्रामे का शिकार न होकर असल मुद्दा बने, जो राज्य निर्माण के मूल उद्देश्य को साधता हो यह देखना बांकी है ।
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
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