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प्राकृतिक जल स्रोतों के रिचार्ज की संभावना बढ़ाती है पर्वतीय इलाकों में पड़ी बर्फ,सरकारों के पास रोडमेप हो तब ना.पूरी जानकारी@हिलवार्ता
उत्तराखंड में तीन दिन पहले हुई बर्फवारी कई तरह की उम्मीदों का पिटारा खोलती है बर्फवारी में पर्यटको की आवाजाही से जहाँ होटल व्यवसाय को फायदा मिलता है वहीं स्थानीय काश्तकार इसे अपनी आजीविका से जोड़कर देखते हैं तमाम तरह की परेशानी संग फलपट्टी के लिए इसे बहुत अच्छा माना जाता है साथ मे जलस्रोतों के रिचार्ज में भी बर्फ़ महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । जलसंवर्धन के क्षेत्र में जानकारी रखने वालों में इस बात की नाराजगी है कि सरकारों ने इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाए ,जरूरत थी कि पारंपरिक जलस्रोतों को संरक्षित करने के लिए इस सीजन में उन्हें रिचार्ज कराया जाता ।
1990 के बाद वर्षा और बर्फवारी में निरन्तर कमी होती गयी जिससे अधिकतर नौले धारों में पानी कम होता गया और कई सूखते गये । नौलों के सूखने का एक अन्य कारण भूकम्प के झटकों का पड़ना है हिमालयी क्षेत्र भूकंपों के लिए मुफीद है हल्के फुल्के भूकंप हर साल आने के कारण भी जलस्रोतों में पानी रिसाव हुआ है जलसंकट की यह समस्या दिन प्रतिदिन भीषण रूप धारण करती जा रही है।गर्मी के महीने शुरु होते ही उत्तराखंड के गांव गांव में पेयजल की आपूर्ति एक भीषण समस्या के रूप में उभरने लगती है।
कुमाऊं,गढ़वाल के अलावा हिमाचल प्रदेश और नेपाल में भी जल आपूर्ति के परंपरागत प्रमुख साधन नौले ही रहे हैं।
दून विवि में कार्यरत डॉ हरीश चंद्र अंडोला बताते हैं कि नौले हिमालयवासियों की समृद्ध-प्रबंध परंपरा और लोकसंस्कृति के प्रतीक हैं। कुमायूँ में चंद राजाओं के समय मे सर्वधिक नोलों का निर्माण हुआ अकेले अल्मोड़ा नगर में ही चंद राजाओं ने 1563 में राजधानी बनाने के साथ साथ 360 के लगभग नौलों का निर्माण किया, इन नौलों में चम्पानौला, घासनौला, मल्ला नौला, कपीना नौला, सुनारी नौला, उमापति का नौला, बालेश्वर नौला,बाड़ी नौला, नयाल खोला नौला,खजांची नौला, हाथी नौला, डोबा नौला,दुगालखोला नौला आदि प्रमुख हैं।लेकिन अपनी स्थापना के लगभग पांच शताब्दियों के बाद अल्मोड़ा के अधिकांश नौले लुप्त हो कर इतिहास की धरोहर बन चुके हैं और इनमें से कुछ नौले भूमिगत जलस्रोत के क्षीण होने के कारण आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
जल संकट की वर्त्तमान परिस्थितियों में आज भूमिगत जलविज्ञान की इस महत्त्वपूर्ण धरोहर को न केवल सुरक्षित रखा जाना चाहिए, बल्कि इनके निर्माण तकनीक के संरक्षण व पुनरुद्धार की भी महती आवश्यकता है। मौसम चक्र के साथ उत्तराखंड में जलसंवर्धन की कोशिशें शुरू करने की इच्छा शक्ति सरकारों में पैदा हो एसी उम्मीद की जानी चाहिए ।
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
@http://hillvarta.com