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इंटरनेट , सत्ता और कविता , इतिहास और फिल्मों पर चर्चा , यूटोपियन सोसाइटी की पहल पर खटीमा साहित्य समागम हुआ सम्पन्न
- खटीमा , माडर्न यूटोपियन सोसायटी के तत्वावधान मे एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे राज्य के साहित्य ,कला ,पत्रकारिता छेत्रों से जुड़े विशिष्ठ लोगों सहित स्कूली बच्चों ने परिचर्चा में प्रतिभाग किया ।
सीमांत साहित्य उत्सव का यह द्वितीय वर्ष है परिचर्चा में कई विषयों पर गहन मंथन हुआ सोसाइटी ने परिचर्चा के लिए तीन विषय रखे थे पहला इंटरनेट के नए अवतार और नई पीढ़ी , इंटरनेट के सकारात्मक , नकारात्मक प्रभावों पर विशेषज्ञ के बतौर श्री वरुण अग्रवाल ,राज सक्सेना ,अंजू भट्ट ,कमलेश अटवाल और नेपाल से श्रीमती चन्द्रकला पंत ने विस्तारपूर्वक अपनी अपनी बात रखी । श्रोताओं ने प्रश्न पूछे ,विशेषज्ञों ने जबाब दिए , इस सत्र का आकर्षण बच्चों का पैनलिस्ट से प्रश्न पूछना रहा । - विशेषज्ञों से टेक्नोलॉजी का सकारात्मक नकारात्मक प्रभाव, इंटरनेट पर निर्भरता ,इंटरनेट का प्रयोग की अवधि जैसे सवाल पूछे गए ,अधिसंख्य ने माना कि टेक्नोलॉजी से दूर रहना कठिन है जबकि सब जान रहे हैं ,कि इंटरनेट की वजह स्थापित मान्य मानकों की अनदेखी हो रही है , बच्चे सिर्फ और सिर्फ गूगल बाबा की बात पर भरोसा कर रहे है यहाँ तक कि उसके अधीन हो रहे हैं, उसे ही सच मान रहे हैं , पर इस डर से बच्चों को इंटरनेट से वंचित करना भी ठीक नही है ,माता पिता निगरानी रख सकते हैं *
- दूसरे सत्र का विषय सत्ता और कविता रहा जिसमे श्री अमित श्रीवास्तव डॉ नवीन भट्ट ,जगदीश पंत और नेपाल से आये कमलाकांत चटोत रहे ,इस सत्र में कविता और सत्ता के अंतर्विरोधों , अन्तर्सम्बन्धों , पर चर्चा हुई, पैनल के सदस्यों का कहना था कि कविता में सत्ता रास्ता दिखाने की ताकत है, समय समय पर सत्ताएं कविता को अपने फायदे के लिए उपयोग करती आई है, लेकिन सत्ता की चाटूकारिता कविता हो ही नहीं सकती, कविता हमेशा सत्ता से संघर्ष करती है ,उसे सही करने को विवश करती है सही और गलत का बोध कराती है । पैनल में कविता के स्वरूप पर मतब्य हुआ साथ ही राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय कविताओ से हुए सामाजिक सामरिक प्रभावों पर चर्चा हुई ।
- तृतीय सत्र सिनेमा और इतिहास पर केंद्रित रहा , जिसमे सर्व श्री ललित मोहन रयाल ,श्री अशोक पांडेय ,डॉ सिद्धेश्वर सिह ,डॉ अपर्णा सिंह ,विशेषज्ञ के तौर पर शामिल रहे ,चर्चा में हालिया फिल्मो , विदेशी फिल्मो की चर्चा हुई , पैनल ने स्वदेसी ,विदेशी ,फिल्मों में एतिहासिक तथ्यों को समय संमय पर सुविधानुसार बदलने की बात मानी , हालिया फ़िल्म पद्मावत एवम मुगलेआजम जैसी फिल्मों पर विस्तृत चर्चा की गई, विशेषज्ञों का मानना था कि फिल्म इतिहास का सही सही चित्रण नहीं है , कुछ हिस्सा जरूर इतिहास का होता है ,ज्यादातर फ़िल्म बनाने के पीछे उसके निर्माता का मनोविज्ञान काम करता है, कि वह उसे कैसे बनाते हैं ,अधिकतर देखा गया है कि इतिहास को तोड़ मरोड़ के पेश किया जाता है ,पैनल ने इस बात पर जोर दिया कि फ़िल्म में प्रदर्शित स्थान कालांतर की भौगोलिक सांकृतिक इतिहास को दर्ज जरूर करती हैं ।
- कार्यक्रम संयोजक डॉ चंद्रशेखर जोशी सोसाइटी के सचिव श्री पुरन बिष्ट ने संचालन किया , कार्यक्रम में श्री हरीश पंत मनमोहन जोशी ,ओपी पांडेय डॉ अंजू भट्ट डॉ लता जोशी पंकज भट्ट पंकज पंत , के एस रौतेला ,संंगीता अग्रवाल,
- के सी जोशी सहित खटीमा के सैकड़ो साहित्य प्रेेमीयो स्कूली बच्चों ने भागीदारी की ।
- समापन फाग और राग सत्र में मिहिर तिवारी की प्रस्तुति , होशियार राम ने जागरण एवम लोक धुनों के मधुर संगीत पश्चात हुआ । सीमांत छेत्र में हुए इस आयोजन से एक नई परंपरा की शुरुवात हुई है डॉ चंद्रशेखर जोशी ने कहा कि उनका उद्दयेश्य छेत्र के युवाओं को कला साहित्य के प्रति जागरूक करना है राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर की नई विधाओं से उनको लाभ मिलेगा साथ ही पिछड़े छेत्र को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में उनकी सोसाइटी प्रयासरत है ।
Hill varta news desk