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लाकडाउन में रचनात्मक कार्यों से बच्चों को जोड़ा है उत्तराखंड के चुनिंदा टीचर्स ने आइये देखते हैं कैसे @हिलवार्ता
लाकडाउन के चलते स्कूल कालेज बंद है इस बीच कुछ रचनात्मक अध्यापक घर मे खाली न बैठ रचनात्मक कार्यों से छात्रों को जोड़े हुए हैं जिनमे से प्राथमिक विद्यालय वजेला अलमोड़ा के टीचर भाष्कर जोशी ने हिलवार्ता से अपनी क्रिएटिविटी शेयर की है जिसे आपके अवलोकन के लिए हम जैसा प्राप्त वैसे पब्लिश कर रहे हैं । वहीं आज रचनात्मक शिक्षक मंडल से जुड़े स्कूली बच्चों द्वारा मई दिवस की पूर्व संध्या पर हुए क्रियाकलापों पर सूचना कार्यक्रम के संयोजक नवेंदु मठपाल ने भेजी है जिसे भी हम आपकी नजर हूबहू कर रहे हैं । जो इस तरह है 👉
भाष्कर बताते हैं ,13 मार्च 2020 से विद्यालय कोरोना वैश्विक महामारी के कारण बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बंद कर दिए गए ,अचानक आई सूचना के अनुपालन में अध्यापकों को इतना समय न मिल सका की वे बच्चो को कुछ परियोजना कार्य या अन्य प्रकार का अकादमिक कार्य दें सकें अतः बच्चो को व्हाट्सएप समूह बना कर जोड़ा गया इसमें भी समस्या आई कि सेवित क्षेत्र मे न तो सभी बच्चो के पास स्मार्टफोन उपलब्ध थे और जिनके पास स्मार्टफोन थे भी उनके पास डाटा नहीं था समस्या का समाधान किया गया और शुरुआत में बस 6 बच्चें ही समूह से जुड़ पाये इन बच्चो ने अपनी कॉपियों में प्रश्न लिख कर अन्य बच्चों को कार्य करने के लिए दिया इस प्रकिया में बच्चों को शारीरिक दूरी का पालन करने को भी कहा गया और इस प्रकार हमारी ऑनलाइन व्हाट्सएप क्लासेज की शुरुआत हुई, यह व्हाट्सएप ऑनलाइन क्लासेज मुख्यतः उन बच्चो को लाभ दे रही है जिनके लिए शिक्षा के नाम पर बस सरकारी विद्यालय ही एक मात्र साधन है और वे भी इस कोरोना काल में बंद है,आज यह हमारे लिए बच्चों के साथ संवाद करने का एक बेहतर माध्यम सिद्ध हो रहा है।
आज इस ऑनलाइन क्लासेस में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों से 150 से ज्यादा बच्चे अपनी दैनिक अकादमिक गतिविधियों से जुड़े है ,यह बच्चो को अधिगम सामग्री उपलब्ध कराने जे साथ साथ उनके साथ संवाद करने में बहुत आवश्यक है, कई जिलों के शिक्षक गण भी समूह से जुड़े है और अपने अपने विद्यालय के विद्यार्थियों के साथ समूह के माध्यम से संवाद कर रहे है , इस कोरोना काल मे बच्चों से संवाद करना आवश्यक है अन्यथा अकेलापन और मित्रों से दूरी उन्हें धीरे धीरे अवसाद की और धकेल सकता है ।
प्रक्रिया
Ncert की वेबसाइट से सबसे पहले संबंधित कक्षा की पाठ्य पुस्तक डाउनलोड की जाती है व उनके पाठ को बच्चों को प्रेषित किया जाता है पाठ के साथ अपने हाथ से लिखें प्रश्न उत्तर दिए जाते हैं यह प्रक्रिया रोज की रोज चलती है बच्चे जहां कहीं समस्या पाते हैं वे फोन कर कर पूछ लेते हैं क्योंकि हमारे पहाड़ों में नेटवर्क की समस्या रहती है इसलिए वीडियो भेजने में समस्या आती है लेकिन फिर भी यह कार्य किया जा रहा है और इसका बेहतर परिणाम मिल रहा है 13 मार्च से बच्चे अवकाश पर हैं पर वह कुछ ना कुछ गतिविधियों में संलग्न है इस दौरान उन्हें अधिगम सामग्री व्हाट्सएप के माध्यम से प्राप्त हो रही है विद्यालय खुलने पर अवकाश के दिनों का पढ़ाया गया पाठ की पुनरावृति कि जाएगी , बच्चो से फीडबैक लेने के लिए उनसे किये गए कार्य की फ़ोटो प्रेषित करने को कहा जाता है । बच्चो से वॉइस काल कर के लगातार संवाद किया जा रहा है ,
सुबह विषयगत सामग्री दी जाती है और शाम के समय रचनात्मक सामग्री व योगाभ्यास रात्रि के समय पढ़ने की आदत का विकास करने के लिए बेड टाइम स्टोरी नाम से रोज pdf फॉर्मेट में कहानी की किताब दी जाती है, उपरोक्त सभी गतिविधि उन्हें व्यस्त रखने के साथ-साथ ज्ञान भी दे रही है ।
अब यह कार्यक्रम हम न सिर्फ अल्मोड़ा जनपद में चला रहे है साथ ही साथ उत्तराखंड के अन्य जिलों के बच्चे भी हमारे साथ जुड़ चुके है , अपने विद्यालय राजकीय प्राथमिक विद्यालय के बच्चो को लेकर किया गया कार्य अब उत्तराखंड के 150 से अधिक बच्चो तक अपनी पहुंच बना चुका है ।
इस कार्यक्रम को प्रभावी बनाने में कई मित्र भी मदद कर रहे है जिनमें मुख्य रूप से राजेश पांडे जी देहरादून से भुवन चतुर्वेदी जी देघाट से दीवान कार्की जी दिल्ली से दीपक बिष्ट जी पौड़ी से ,गौतम तिवारी जी मदद कर रहे हैं ।
यदि आपके आसपास भी कोई बच्चा (कक्षा 1 से लेकर 8 तक) पढ़ना चाहता है तो वह हमसे 8899477295 पर संपर्क कर सकता है या फिर नीचे दिए गए व्हाट्सएप लिंक से सीधे जुड़ सकता है
https://chat.whatsapp.com/IwHfnydEr0vDtERbKoAjZq
वहीं रचनात्मक शिक्षक मंडल के अगुवा नवेंदु लिखते हैं
मई दिवस की पूर्व संध्या पर बच्चों ने देखी फ़िल्म ग्लास…रचनात्मक शिक्षक मण्डल की पहल पर से 200 से अधिक स्कूली बच्चों ने मई दिवस की पूर्व संध्या पर जश्न के बचपन व्हाट्सएप्प ग्रुप व सोशल मीडिया के अन्य माध्यम से मानवीय श्रम के महत्व को रेखांकित करती फ़िल्म ग्लास को देखा। फ़िल्म निर्देशक और निर्माता बर्ट हैन्स्ट्रा की 1958 की डच लघु वृत्तचित्र फिल्म है। इस फिल्म ने 1959 में डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट के लिए ऑस्कर जीता। यह फिल्म नीदरलैंड में कांच उद्योग के बारे में है।फ़िल्म हाथ से विभिन्न कांच के सामान बनाने वाले कारीगरों के मानवीय श्रम को बताती है। बच्चों को फ़िल्म दिखाने के साथ साथ दिल्ली से सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े सिनेमा समीक्षक संजय जोशी विस्तार से बच्चों को उसकी भाषा,संगीत के बारे में बताते भी चलते हैं।जोशी के अनुसार फ़िल्म की सबसे महत्वपूर्ण घटना है फ़िल्म में जैसे ही कांच मानवीय श्रम के बजाय मशीन से बनता है फ़िल्म का संगीत भी उसी अनुसार तेजी बदल जाता है।फिल्मकार अंत में फिर से मानवीय तरीके से कांच बनाना दिखा मानवीय श्रम के महत्व को रेखांकित करता है। जाने माने फिल्मकार बर्ट हैनस्ट्रा को मशीन का मालिक अपने कांच उद्योग के प्रचार के लिए फ़िल्म बनाने के लिए लेकर जाता है पर वहां वे कांच उद्योग के मानवीय श्रम पर केन्द्रित कर फ़िल्म का निर्माण कर डालते हैं।फ़िल्म के मध्य में जबकि मशीनी श्रम, मानवीय श्रम पर हावी होता दिखता है अचानक मशीनी कमी से एक बोतल के टूटने की घटना फिर से मानव के उसके श्रम से रिश्ते को सामने ले आती है और पूरे फ़िल्म का परिदृश्य ही बदल जाता है।उन्होंने कहा कि वर्तमान में मशीनें जिस प्रकार हमको रोबोट में तब्दील करती जा रही हैं यह प्रक्रिया खतरनाक है ऐसे में मनुष्य बने रहना और उसपर भी श्रम के मानवीय पहलू के सम्मान को बरकरार रखना अति महत्वपूर्ण है। नवेंदु बताते हैं कि इस तरह की फ़िल्म से बच्चों में आत्मविश्वास पैदा होता है इस तरह की फ़िल्म श्रम की महत्ता औऱ दुनियां के प्रति नजरिया बदलती है । इसी क्रम में बच्चों को लाकडाउन पीरियड में रचनात्मकता से जोड़ा गया जिससे उनमें किताबी पढ़ाई के इतर समाज और दुनियां को समझने की प्रवृत्ति विकसित हो ।
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
- हिलवार्ता न्यूज पढ़ने के लिए http://hillvarta.com पर विजिट कीजये, व्हाट्सएप no 9760038440 पर आप भी किसी तरह के क्रियेटिव कार्य को लिख भेजिये जिससे कि अधिक से अधिक लोग आपकी क्रिएटिविटी जान सकें धन्यवाद।