Uncategorized
सरकार स्कूल बंद कर रही है,एक अध्यापक ने भगीरथ प्रयास कर, 8 से 71 पहुँचा दी छात्र संख्या पूरी कहानी पढ़िए@हिलवार्ता
उत्तराखंड में जगह जगह सरकार संसाधनों की कमी का रोना रोकर स्कूल अस्पताल बंद कर रही है हालिया 2700 से अधिक स्कूल बंदी के आदेश पारित हो चुके हैं कई स्कूलो के शिक्षक इधर उधर समायोजित हो रहे हैं । अधिकतर मामलों में स्कूलों में पर्याप्त छात्र संख्या न होना बताया जाता है लेकिन इस बात की कवायद शायद ही हुई है कि छात्र संख्या किसी भी तरह बढाई जाय आस पास के छात्र अगर स्कूल नहीं आ रहे हैं तब इसके दो कारण हो सकते हैं पहला अध्यापक नहीं हैं या आसपास निजी स्कूल उससे बेहतर है । अगर टीचर नहीं है यह जिम्मा सरकार का है अगर निजी स्कूल के मुकाबले कमतर पढ़ाई है इसकी जिम्मेदारी टीचर और सरकार दोनो की है चूंकि सरकार उक्त टीचर का नियोक्ता है अतः उसकी कार्यक्षमता कम है तो सरकार की कार्यक्षमता पर सीधा असर होगा और सरकार की बदनामी होगी । अब अगर टीचर में किसी तरह की कमी है तो उसे बेहतर शैक्षिक वातावरण प्रदान करना बीच बीच उसकी कार्यकुशलता आखिर कौन देखेगा ?
तमाम प्रश्नों के बीच जहां सरकार अक्षम दिखती है उन्हें राह दिखाते हैं कुछ शिक्षक जो अपने प्रयासों से स्कूलों को बचाने में लगे है हालिया उत्तराखंड के खटीमा में शैक्षिक दखल से जुड़े अध्यापक इकट्ठा हुए उन्होंने अपने अपने क्षेत्र में सरकारी इमदाद के इतर किये कार्यों की समीक्षा की इस ग्रुप ने किताबी ज्ञान से इतर बच्चों का सर्वांगीण विकास कैसे हो पर लंबी बातचीत की है । इसी तरह प्राथमिक विदयालय वजेली के भाष्कर जोशी सहित दर्जनों नाम ऐसे हैं जो अपने व्यक्तिगत प्रयासों से विभाग को आइना दिखा रहे हैं और यह भी आईना दिखा रहे हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति को तलाव लश्कर की जरूरत नही होती इच्छा और लगन से सब संभव है ।
वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं ने एक ऐसे ही ऊर्जावान दृढ़ इच्छाशक्ति से लबरेज टीचर की कहानी भेजी है अपने फेसबुक वॉल पर । साभार इसे कॉपी कर हम हिलवार्ता के माध्यम से आप तक अग्रेसित कर रहे हैं जो इस प्रकार है ।
देवप्रयाग में शिक्षक ने अपनी मेहनत से बदल दी स्कूल की तस्वीर
उत्तराखंड में स्कूलों की दिशा और दशा भले ही सरकारी तंत्र काम आये, न आये लेकिन राजकीय प्राथमिक स्कूल देवप्रयाग के शिक्षक श्री विजय सिंह रावत ने खुद के भागीरथ प्रयास से स्कूल को नई उड़ान पर पहुँचाया है। इच्छाशक्ति सबसे बड़ी चीज उभर कर आई है जो गुरुजी विजय जी के पास है। 2014 से आज तक उन्होंने स्कूल में एक एक चीज जुटाने के लिए रात दिन एक किया।
इसमें उन्हें जरूर कुछ लोगों की मदद मिली। लेकिन गुरुजी का स्कूल को चमकाने में स्वयं का दो लाख रुपये लग गया।
राजकीय प्राथमिक स्कूल देवप्रयाग में 2014 में छात्र संख्या 8 थीं।
स्कूल के बंद होने की तलवार लटक रही थीं। क्योंकि देवप्रयाग का एक अन्य सरकारी हाई स्कूल इन्ही कारण से बंद हो गया था। 8 स्टूडेंट्स सरकारी मानक में खरे नहीं उतर रहे थे। कारण लोगों का इंग्लिश मीडियम के स्कूलों में साफ सफाई, बोल चाल का रुझान था। जिला शिक्षक अधिकारी श्री एसपी सेमवाल ने स्कूल को ख़त्म करने करने के आदेश दे दिए थे। स्कूल में नए नए पहुँचे गुरुजी विजय सिंह रावत ने अधिकारी को भरोसा दिया कि, वह स्कूल के लिए दिन रात एक कर छात्र संख्या बढ़ायेगे। वह भरोसे पर खरे उतरे। छात्र संख्या हो गई है 71. कहाँ एक टीचर दूसरी जगह शिफ्ट हो रहे थे यहाँ श्रीमती कमला पंत, श्री नवनीत चौहान की
बीच में तैनाती हो गई है।
हिंडोलाखाल पीएससी में गाइनी डॉक्टर हैं डॉ दीप्ति गुप्ता।
उनके पति उत्तर प्रदेश में वेटनरी डॉक्टर हैं। उनका बेटा ऋषिकेश इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता था। राजकीय प्राथमिक स्कूल देवप्रयाग का उन्होंने दौरा किया और साफ सफाई, खेल कूद, पढ़ाई पाई, उन्होंने अपने बच्चे का एडमिशन करा दिया। डॉक्टर ने बताया कि इंग्लिश मीडियम स्कूलों में दिखावा रह गया है। वहाँ लोग स्टेटस के लिए भी स्कूल भेजते हैं। देवप्रयाग के अन्य कर्मचारियों ने भी अपने बच्चों का विद्यालय में दाखिला कराया है।
चाका गजा नरेंद्र नगर के अंतर्गत जखोली गांव के विजय रावत ने 1997 में बीटीसी की थी। वह शिक्षक बन गए। उन्होंने दुर्गम राजकीय भुतियाआण स्कूल में वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया।
जब सुगम देवप्रयाग में आये, तो स्कूल की हालत बहुत खराब थीं।
स्कूल की छत टपक रही थीं। फर्नीचर टूटा हुआ कमरों में था। झा डिया थीं। दरवाजो में कुंडे नहीं थे। गंधगी पसरी हुई थीं। बिजली का कनेक्शन नहीं था। न पानी का था। उन्होंने इसकी सूरत बदलने की ठानी।
दो साल पहले तक सरकार की तरफ से पांच हज़ार रुपये स्कूल को मिलता है , रंगाई, पुताई, साफ सफाई, फर्नीचर इत्यादि। अब समग्र शिक्षा के तहत 25 हज़ार हो गया है। साल भर में इतने से क्या होना था। गुरुजी विजय ने सबसे पहले स्वयं ही काम किया। छुटी होने पर वह स्कूल की सूरत बदलने पर शोध कार्य कार्य करते थे। और योजना बनाते थे कि, कौन सी चीज किस प्रकार स्कूल में आ सकती है। धीरे धीरे काम ने रंग जमाना शुरू किया। स्कूल की मैडम श्रीमती पंत के पति श्री राकेश पंत फार्मेसिस्ट हैं और निजी मेडिकल की दुकान चलाते हैं। स्कूल के बगल में उनका घर है।
उन्होंने स्कूल में हरियाली लाने के लिए रात रात सिंचाई की।
गुरुजी विजय फूल लाये, उन्हें लगाया ही नहीं उन पर चौबीस घंटे ध्यान दिया गया। कुछ सीमेंट के बैग ला कर छत के छेद बंद किये गए।
मैदान में हरियाली के बाद फूलों ने ऐसी खुश्बू बिखेरी कि लोगों का ध्यान होने स्कूल पर जाने लगा। बिजली का कनेक्शन लिया गया। किसी ने ट्यूबलाइट दान दी तो लाईन मैन ने फ्री में वह लगा दी।
गुरुजी विजय को पता चला कि जीजीआईसी देवप्रयाग में तीन कंप्यूटर कूड़े में पड़े हैं। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से खण्ड एजुकेशन अधिकारी श्री बिष्ट से अनुरोध किया कि कूड़े में पड़े 3 कम्प्यूटर उनके स्कूल को दिए जाएं। उन्होंने चिठी लिखी। वहाँ के प्रधानाचार्य से खराब कम्प्यूटर ला कर गुरुजी विजय उन्हें बनवाने श्रीनगर ले गए। बनाकर स्कूल में लगाया। तो बच्चे कम्प्यूटर क्लास पढ़ने लगे।
इस स्कूल में प्रोजेक्टर भी लगा है। जिसका उपयोग बच्चे करते हैं।
स्कूल में स्टूडेंट्स बैंक, लाइब्रेरी, की स्थापना की गई है। स्कूल से प्रभावित हो कर 10 दिन पहले देवप्रयाग के एमएलए श्री विनोद कंडारी ने 4 नए कम्प्यूर दिए हैं। अब इस विद्यालय में कम्प्यूटर की
संख्या सात हो गई है। गुरुजी विजय रावत ने 500 मीटर दूर पर स्थित तहसील देवप्रयाग में संपर्क किया है कि, वहाँ स्थापित स्वान केंद्र से स्कूल के लिये ब्रॉडबैंड दिया जाय। कुछ करने वाले गुरुजी जी के लिए कौन मना करता। तहसील वालों ने उन कहा है ओएफसी केबल का प्रबन्ध कर ले। जिसकी चार पांच हज़ार रुपए है। इस ब्रॉडबैंड के स्कूल में पहुँचने से ऑन लाइन क्लास पढ़ाने की योजना है।
सीईओ श्री एसपी सेमवाल ने भी कुछ पहले स्कूल में जाकर 3 घण्टे व्यतीत कर एक एक चीज का परीक्षण किया। वह हर स्कूल
ऐसा देखना चाहते हैं लेकिन मास्टरों के पास गुरुजी विजय रावत जैसी इच्छाशक्ति होनी चाहिए। होगी भी। जिसकी मुझे तलाश है।
प्रदेश में मेहनती कई शिक्षकों के भगीरथ प्रयासों से स्कूलों की हालत बदल रही है ऐसे टीचर्स को सरकार को चाहये अन्य स्कूलों की काउंसलिंग करवानी चाहिए जहां थोड़ा बहुत बच्चे इधर उधर हुए हैं उन्हें वापस इन स्कूलों में लाया जाए । अगर ईमानदारी से काम हो तो वह दिन दूर नही जब हमारे सालों पहले बने इन स्कूलों को बचाया जा सकता है और शिक्षा के लिए पलायन कर रहे लोग अपनी माटी से जुड़े भी रहेंगे ।
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
@hillvarta. com