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उत्तराखण्ड

विधानसभा चुनाव 2022 : पर्वतीय क्षेत्रों में कम लोग कर रहे मतदान, 2017 का ट्रेंड जारी रहा तो कई दलों का चुनावी गणित होगा प्रभावित, विशेष रिपोर्ट @हिलवार्ता

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार कम हो रहा मतदान का प्रतिशत के मायने क्या हैं लगातार पर्वतीय क्षेत्र की उपेक्षा से नाराज लोग मतदान में कम हिस्सा ले रहे हैं या कोई अन्य कारण हैं ? विगत चुनावों पर नजर डाली जाए तो आंकड़े चौकाने वाले हैं ।

पर्वतीय क्षेत्रों में वाकई लोकतंत्र की आवाज कमजोर पड़ रही है ? इस गंभीर मसले पर देहरादून स्थित एसडीसी फाउंडेशन ने 2017 में विधानसभा के चुनाव में हुए मतदान पर “”पलायन और उत्तराखंड चुनाव 2017″” रिपोर्ट जारी की है । आइये समझते हैं पूरी रिपोर्ट क्या कहती है ……

फाउंडेशन का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर मतदाताओं की संख्या मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम तो है ही, साथ ही इन क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम लोग वोट करने जाते हैं। इस तरह से करीब 40 से 50 प्रतिशत पहाड़ का मतदाता लोकतंत्रिक प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाता। रिपोर्ट के अनुसार कम मतदान के पीछे कहीं न कहीं प्रदेश का भारी पलायन एक बड़ा कारण है ।

एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने बताया कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में औसत मतदान 65.60 प्रतिशत था। उनके अनुसार उत्तरकाशी जिले को छोड़ दें तो सभी पर्वतीय जिलों में मतदान प्रदेश के औसत मतदान से कहीं कम हुआ। सबसे कम मतदान प्रतिशत पहाड़ी जिलों टिहरी, पौड़ी और अल्मोड़ा में रहा।

मैदानी जिले हरिद्वार में लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण और पिरान कलियर विधान सभा में प्रदेश मे सबसे अधिक मतदान हुआ था। तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान 81 से 82 प्रतिशत के बीच हुआ था।

पौड़ी जिले के लैंसडौन व चौबट्टाखाल और अल्मोड़ा जिले के सल्ट में सबसे कम 46 से 48 प्रतिशत के बीच मतदान हुआ था।  टिहरी जिले के घनसाली में भी मतदान प्रतिशत 50 प्रतिशत से कम था। यहां 49.19 प्रतिशत वोट पड़े थे। नौ पहाड़ी जिलों के 34 निर्वाचन क्षेत्रों में से 28 का वोट प्रतिशत राज्य के औसत 65.60 प्रतिशत से कम था।

अनूप नौटियाल ने कहा कि पर्वतीय जिलों में 69.38% के साथ सिर्फ उत्तरकाशी जिले ने मतदान प्रतिशत बेहतर दर्ज किया गया था। ऐसे में सरकारों, निति नियंताओं और समस्त जन प्रतिनिधियों को देखने और समझने की ज़रूरत है की उत्तरकाशी मे ऐसे क्या कारण हैं की वहां अन्य पहाड़ी जिलों की तुलना मे मतदान प्रतिशत इतना अधिक है। उन्होंने उत्तराखंड प्रदेश मे उत्तरकाशी मॉडल को अपनाने की बात कही।

अनूप के अनुसार चुनाव आयोग को अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में उत्तरकाशी जिले की तरह मतदान प्रतिशत बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए। कोविड प्रतिबंधों को देखते हुए टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे प्रयास किये जा सकते हैं। इस के अलावा रिपोर्ट मे खास बात यह है कि राजधानी देहरादून शहर के सभी पांच निर्वाचन क्षेत्रों; रायपुर, मसूरी, राजपुर रोड, धर्मपुर और देहरादून कैंट में भी मतदान प्रदेश के औसत की तुलना मे 60 प्रतिशत से कम मत के साथ काफी कम रहा। रिपोर्ट को तैयार करने मे एसडीसी फाउंडेशन के प्रवीण उप्रेती, प्यारे लाल और विदुष पांडेय शामिल रहे ।

पूरे विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि पर्वतीय सीटों के कम मतदान पर कम होता मतदान, चुनावी आंकड़ों को पलायन के चश्मे से देखने की ज़रूरत है । देखना होगा 14 फरवरी को मतदान में पर्वतीय जिलों का प्रतिशत क्या रहता है । क्या कम होता मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में सरकार सफल हो पाती है या पुराना ट्रेंड बरकरार रहता है । ज्ञात रहे कि प्रदेश मे 2017 विधानसभा चुनाव मे अल्मोड़ा के सल्ट और पौड़ी के लैंसडौन व चौबट्टाखाल विधान सभा मे सबसे कम मत प्रतिशत मतदान हुआ । साफ है कि पर्वतीय क्षेत्र का मतदान प्रतिशत राजनीतिक दलों का चुनावी गणित पर असर डाल सकता है ।

हिलवार्ता न्यूज डेस्क 

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