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शिक्षा को ग्राह्य और उपयोगी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे शिक्षकों की मुहिम है,"शैक्षिक दखल". आइये पत्रिका की पूरी समीक्षा पढ़ जानते हैं. @हिलवार्ता

शिक्षक समाज का महत्पूर्ण हिस्सा हैं पढ़ाने के साथ साथ पढ़ाने के तौर तरीको और बच्चों के समझने लायक शिक्षा प्रदान करना,उन्हें किताबी ज्ञान के इतर प्रयोगधर्मी बनाना, आत्मनिर्भरता के गुर देना सब एक शिक्षक के हाथों ही संभव है,स्कूल और किताबों से आगे नित नए प्रयोगों की जरूरत होती है ऐसी ही एक मुहिम उत्तराखंड के जागरूक शिक्षकों की जीवनचर्या बन गया है इस तरह की मुहिम चला रहे जागरूक शिक्षकों का दस्तावेज है “शैक्षिक दखल”।
शिक्षकों के साथ कदम मिलाती शैक्षिक दख़ल शीर्षक से मनोहर चमोली ‘मनु’ने शैक्षिक दखल पुस्तक की विस्तृत समीक्षा की है उनकी समीक्षा के कुछ अंश इस प्रकार हैं आइये हम भी पढ़ते हैं पत्रिका के 14दहवे अंक में खास क्या है.
शैक्षिक सरोकारों को समर्पित शिक्षकों तथा नागरिकों का साझा मंच ‘शैक्षिक दख़ल’ का नवीनतम अंक प्रकाशित हो चुका है, आवरण का रंग संयोजन बेहतरीन है, आवरण के साथ ही पत्रिका के सभी रेखांकन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित केन्द्रीय विद्यालय की कक्षा आठ में पढ़ रही छात्रा अनुष्का दत्ता ने तैयार किए हैं, आवरण (भीतर) में ‘बच्चे खेल रहे हैं’ अर्थपूर्ण कविता है। यह कविता भले ही शहरी और कस्बाई बस्ती के जीवन की झांकी का प्रतिनिधित्व करती है,इस बार अभिमत में सात महत्वपूर्ण पाठकों का दृष्टिकोण प्रकाशित हुआ है, मीनाक्षी रयाल,इन्द्र लाल वर्मा,गिरीश चंद्र पांडेय सीधे छात्रों से जुड़े हुए पाठक हैं।
पत्रिका के संपादक महेश पुनेठा एन॰सी॰ई॰आर॰टी॰ की पाठ्य पुस्तकों के संबंध में शिक्षकों के हवाले से कहा है -अधिकतर शिक्षकों की शिकायत रहती है कि नई किताबें बेकार हैं,इन किताबों में बहुत कम विषयवस्तु है,जितनी सूचनाएं व तथ्य पुरानी किताबों में होती थीं,आज की किताबों में नहीं है यानी अपना नजरिया दिया है साथ ही नियमित द्वय संपादकीय ‘कैसा हो,इसका बखूबी जिक्र किया है वहीं संपादक दिनेश कर्नाटक ने “अगर किताबें ही ना हों”तब एक शिक्षक का पढ़ाने का नजरिया क्या होगा समझने की कोशिश संग शिक्षकों को नई दृष्टि देने की कोशिश की है.
अंक में फेसबुक परिचर्चा का भी बखूबी जिक्र हुआ है सूचना क्रांति के इस दौर में पाठ्यपुस्तक तथ्यों तथा सूचनाओं से भरी होनी चाहिए? आदि कुल चौतीस महत्वपूर्ण टिप्पणियों को शामिल किया हैं,अंक में प्रख्यात शिक्षाविद और कथाकार प्रेमपाल के साथ विस्तारित बातचीत को जगह मिली है,शिक्षक और पत्रिका के संपादक महेश पुनेठा ने बीस बिन्दुओं सहित कई गूढ़,ज़रूरी और समसामयिक शैक्षिक सवालों के जवाब जुटाए हैं,पूरी बातचीत प्रभावी है,रोचक है और अंतस में छटपटाहट पैदा करती है,पाठ्यपुस्तक के काम,पाठयपुस्तक की सार्थकता,समझ के विस्तार में उसकी भूमिका पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा,पाठ्यपुस्तक के ढांचे में बदलाव,सूचना,तथ्य और सीखने की ओर उन्मुख कराती पुस्तकों में भेद,पाठ्यपुस्तकों की संरचना, भाषा की पुस्तकों की स्थिति,पाठ्यपुस्तक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण जैसे मुद्दों पर सार्थक बातचीत इस अंक में है।
अंक में दिनेश भट्ट की कहानी सीलू मवासी का सपना प्रकाशित हुआ है. नंद किशोर आचार्य का लेख ‘इतिहास: मनुष्य जाति की प्रयोगशाला’भी शानदार पठनीय है.प्रसिद्ध शिक्षाविद् कृष्ण कुमार का लेख’पाठ और पुस्तकें’की एक-एक पंक्ति पठनीय और रोचक है वे लिखते हैं-पाठ्यपुस्तकें सामान्य पुस्तकों से भिन्न होती हैं,
एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक कृष्ण कुमार लिखते हैं-‘स्कूल के दायरों में सीखों का स्रोत पाठ्यपुस्तकें होती हैं,क्योंकि प्रत्यक्ष अनुभवों की गुंजाइश बहुत कम होती है। वहीं‘पाठ्यपुस्तक की प्रासंगिकता’ के जरिए डाॅ॰ इसपाक अली तर्कपूर्ण नज़रिया सामने लाते हैं, “कालू राम शर्मा का नजरिया‘मात्र पाठ्यपुस्तक पर सवार होकर पढ़ना-लिखना संभव नहीं’ अनुभव और बातचीत के आधार पर तैयार हुआ लगता है. “सविता प्रथमेश के नजरिए में ‘पाठ्य पुस्तकों की भाषा और ग्राह्यता’ के बहाने शिक्षक,शिक्षा और अधिगम पर महत्वपूर्ण बातें शामिल की गयी हैं उनका लेख छत्तीसगढ़ के राज्य शिक्षा बोर्ड के अनुभवों से समृद्ध हुआ लगता है. “कमलेश जोशी हर समय वैज्ञानिक जागरुकता जगाने के साथ-साथ बच्चों के मध्य निरन्तर उपस्थित रहते हैं,‘बच्चों के करने के लिए बहुत कुछ’ आलेख में उन्होंने अपने अनुभवों के साथ बच्चों की दुनिया को भी शामिल किया है। “डाॅ॰ केवलानंद काण्डपाल का कक्षा छःह के लिए सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक पर केन्द्रित लेख छपा है वहीं निर्मल नियोलिया ने ‘कक्षा में पाठ्यपुस्तक का उपयोग कैसे हो?एनसीईआरटी की विज्ञान की कक्षा छह से आठ की पाठ्यपुस्तकों पर केन्द्रित एक और महत्वपूर्ण लेख लिखा है.‘अनुपमा तिवाड़ी का लेख‘पाठ्यपुस्तक की समस्याओं को खोजने की कुंजी’मौजूदा शिक्षा की स्थिति पर सोचने को बाध्य करता है, “प्रतिभा कटियार का आलेख ‘एक पाठ्यपुस्तक जिससे दिल लग जाए’एनसीईआरटी की कक्षा 3 की हिंदी की पाठ्यपुस्तक से प्रेरित लगता है “डाॅ॰दिनेश जोशी ने अपने लेख में पाठ्यपुस्तकों को शिक्षक की जिम्मेदारी की ओर से देखने का प्रयास किया है.

अंक में एक संक्षिप्त सर्वे को भी जगह मिली है आपको कौन सी पाठ्यपुस्तक पसंद है? दस छात्रों ने अपनी पसंदीदा पाठ्यपुस्तक के बारे जैसा कहा वह अंक में इस बात का द्योतक है कि पत्रिका में विद्यार्थियों का पूर्ण दखल है, सर्वे में नैनीताल के राजकीय इंटर काॅलेज गहना के छात्रों ने भाग लिया बताया गया है समीक्षा में मनु ने कहा है कि एक तरह से पत्रिका सभी तरह के कंटेंट से परिपूर्ण है जिसे आने वाले समय मे दस्तावेज के रूप में संरक्षित करने की बात कही गई है,अंत मे पत्रिका के संदर्भ में जानकारी और सम्पादकीय पता दिया गया है ।

पत्रिका: शैक्षिक दख़ल,अंक 7,मूल्य 50रुपया,
संपादकीय पता: शैक्षिक दख़ल समिति,
द्वारा महेश पुनेठा, शिव कालोनी,न्यू पियाना,पोस्ट आॅफिस डिग्री काॅलेज,पिथौरागढ़ 262502 उत्तराखण्ड मेल:[email protected] [email protected]सम्पर्क: 9411707470,9411793190,9411347601
मनोहर चमोली‘मनु’व्हाट्स एप सम्पर्क -7579111144

हिलवार्ता न्यूज डेस्क
@hillvarta.com

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