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Special report on climate change : उत्तराखंड के 13 जिलों का 85 प्रतिशत हिस्सा प्राकृतिक आपदा के लिए हॉटस्पॉट, देहरादून में हुए मंथन में सामने आए कई तथ्य पढिये @हिलवार्ता

देहरादून : कल यहां हुई जलवायु परिवर्तन और अर्ली वार्निंग सिस्टम पर आयोजित कार्यशाला में कई बातें सामने आई है । मानसून से पहले हुई इस कार्यशाला में विभिन्न क्षेत्रों से पहुचे विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी और क्लाइमेट चेंज को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त की ।  वक्ताओं ने सर्वसम्मति से माना कि उत्तराखंड सरकार  सिटीजन फ्रेंडली क्लाइमेट एक्शन और अर्ली वार्निंग सिस्टम को दे प्राथमिकता दे तो मानसून सहित राज्य में आने वाली आपदाओं का न्यूनीकरण सम्भव है ।

सीईईडब्ल्यू-यूएसडीएमए और एसडीसी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में देहरादून के मेयर सुनील गामा सहित कई विभाग प्रमुखों द्वारा जलवायु परिवर्तन और अर्ली वार्निंग सिस्टम पर आयोजित कार्यशाला में हिस्सा लिया गया । मेयर गामा ने कहा कि यह कार्यशाला बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी है। यह देश, प्रदेश और शहर के स्तर पर आपदा से निपटने की तैयारियों को एकीकृत करने की जरूरत को दर्शाती है। उन्होंने राज्य में जंगलों में आग लगने की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई और बाढ़ व सूखे जैसी स्थितियों को राज्य के विकास में बड़ी बाधा बताया। उन्होंने सभी हितधारकों को एक साथ लाने के लिए इस कार्यशाला के आयोजकों को बधाई दी।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए), काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) और सोशल डेवलपमेंट फॉर सोसायटी (एसडीसी) फाउंडेशन ने 15 जून, 2022 को संयुक्त रूप से देहरादून में एक वर्कशॉप का आयोजन किया। इसमें ‘हाउ कैन वी मेक उत्तराखंड क्लाइमेट रिज़िलियंट’ शीर्षक से आयोजित समूह चर्चा (पैनल डिस्कसन) में श्री सुनील उनियाल गामा ने अपना मुख्य अभिभाषण दिया। इस चर्चा में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा और आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (डीएमएमसी) के कार्यकारी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला ने भी हिस्सा लिया।

यह चर्चा, मुख्य रूप से सीईईडब्ल्यू के क्लाइमेट रिस्क एटलस (सीआरए) और डिसिज़न सपोर्ट टूलकिट की मदद से कमजोर समुदायों को सुरक्षा देने और आवास, परिवहन व उद्योगों जैसे बुनियादी ढांचों में निवेश करने के उपायों पर केंद्रित रही। 2021 में जारी सीईईडब्ल्यू के क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी इंडेक्स (सीवीआई) के अनुसार, उत्तराखंड बाढ़ जैसी मौसम की चरम घटनाओं के लिए बेहद संवेदनशील है और पिछले एक दशक में जलवायु संबंधी ऐसी चरम घटनाओं से होने वाले नुकसान में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। सीआरए, देश, प्रदेश और जिला स्तर पर 25 किलोमीटर की बारीकी से गर्मी व जल की अधिकता जैसी मौसम की चरम घटनाओं, फसलों के नुकसान, लार्वा जनित बीमारियों और जैव विविधता के नुकसान से जुड़े दीर्घकालिक और गंभीर जोखिमों की पहचान, आकलन और पूर्वानुमान करेगा।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा ने कहा, “आईएमडी जलवायु संबंधी सूचनाओं को लोगों के अनुकूल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और हम प्रभावी अलर्ट सिस्टम तैयार करने के लिए कदम उठा रहे हैं। उत्तराखंड, एक जलवायु-संवेदनशील राज्य है और आईएमडी मौसम संबंधी सूक्ष्म जानकारियों व चेतावनियों को उपलब्ध कराने के लिए सारे प्रयास कर रहा है। पहाड़ी इलाके के लोग जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं। इनमें हिम रेखाओं का ऊपर की ओर बढ़ना, ग्लेशियर का सिकुड़ना, अनियमित बारिश, सर्दियों में कम बर्फ पड़ना इत्यादि शामिल हैं। मौसम में मिजाज़ होने वाले ये बदलाव उनका जोखिम बढ़ा रहे हैं।”

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) और आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (डीएमएमसी) के कार्यकारी निदेशक डॉ पीयूष रौतेला ने कहा, “आपदाओं का सामना करने के लिए मौजूदा संरचनाओं को मज़बूत बनाने के साथ-साथ उप-नियमों, सामग्री और संरचनागत नवाचारों के रूप में नए वास्तुशिल्प उपायों की जरूरत होगी। आपदाओं की पूर्व चेतावनी प्रणालियों को और मज़बूत करना होगा, जो जन-जीवन और आजीविका को बचाने के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में नुकसान को घटाने में मदद कर सकता है। शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतों के पास भी मज़बूत वॉर्निंग सिस्टम होना चाहिए और उन्हें पूरे वर्ष जलवायु आपदाओं से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।”

सीईईडब्ल्यू के प्रोग्राम लीड श्री अबिनाश मोहंती ने कहा, “पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से पिछले साल किए गए अध्ययनों ने दिखाया कि हिंदू कुश हिमालय ने 1951-2014 के दौरान तापमान में लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी का सामना किया है। तापमान में वृद्धि ने उत्तराखंड में सूक्ष्म जलवायु परिवर्तनों और ग्लेशियर के सिकुड़ने की रफ्तार को बढ़ाया है, जिसके परिणामस्वरूप अचानक आने वाली बाढ़ की आवृत्ति और निरंतरता बढ़ रही है। सीईईडब्ल्यू के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तराखंड के 85 प्रतिशत से ज्यादा जिले बाढ़ और इससे जुड़ी अन्य घटनाओं के प्रमुख केंद्र (हॉटस्पॉट) हैं, जिनमें 90 लाख से ज्यादा आबादी रहती है। यह कार्यशाला से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), आईएमडी जैसी केंद्रीय और उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जैसी राज्य की एजेंसियों और जिला स्तर की एजेंसियों को एक मंच पर लाने का प्रयास है, ताकि आपसी समन्वय और सहयोग से राज्य में कार्यान्वयन योग्य जलवायु संबंधी कार्य योजनाओं को मुख्य धारा में लाया जा सके।”

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक, श्री अनूप नौटियाल ने कहा, “मैं उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, सीईईडब्ल्यू और सभी संबंधित विभागों का उनकी ओर से दिए गए महत्वपूर्ण सुझावों के लिए हृदय से आभार प्रकट करता हूं। ये सभी सुझाव, निश्चित रूप से उत्तराखंड में आपदाओं को घटाने में मदद करेंगे।”

कार्यक्रम में सम्मिलित अन्य गणमान्य व्यक्तियों में श्री एसटीएस लेप्चा, आईएफएस (सेवानिवृत्त) और वरिष्ठ सलाहकार, एसडीसी फाउंडेशन; सुश्री रेचेल जायनफ्रेंची, सरकारी मामलों की प्रमुख, एवरब्रिज; और श्री सुमित अग्रवाल, निदेशक, सेल्स पब्लिक सेफ्टी एशिया प्रशांत, एवरब्रिज, आदि प्रमुख थे।

हिलवार्ता न्यूज डेस्क की रिपोर्ट

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