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स्वास्थ्य

विश्व के 165 देश जिस बीमारी से परेशान हैं उसे भारत में भी दूर करने को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की मंत्रणा,पूरा पढ़िए@हिलवार्ता

केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने कैंसर, मधुमेह, हृदय-रोगों और दिल के दौरे की रोकथाम और नियंत्रण के उद्देश्‍य से राष्‍ट्रीय कार्यक्रम की स्थिति की समीक्षा के लिए आयोजित एक उच्‍चस्‍तरीय बैठक में कहा कि गैर-संक्रामक रोगों की रोकथाम के काम में तत्‍काल तेजी लाने की जरूरत है। उन्‍होंने देश के हृदय-रोग विशेषज्ञों का आह्वान करते हुए कहा कि वे आगे आएं और इस जन आंदोलन का हिस्‍सा बनें, जिससे हम देश में गैर-संक्रामक रोगों पर सफलतापूर्वक नियंत्रण कायम कर पाएं। इस बैठक में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय में सचिव श्रीमती प्रीति सूदन और अन्‍य वरिष्‍ठ अधिकारी उपस्थित थे.
आइये जानते है गैर-संक्रामक/गैर संचारी बीमारियां क्या हैं
गैर संचारी ( नॉन कम्युनिकेबल डिजीज ) दैनिक दिनचर्या में हो रहे बदलाव, खानपान से होने वाली बीमारियां हैंजिनमे केंसर,मधुमेह,रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर, मोटापा,आदि हैं जिस वजह विश्व मे हो रही असमय मौतें सबसे ज्यादा हैं इन्ही को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रित करने की बात हो रही है विश्व के 165 देशों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि यह असमानता के कारण होने वाली बीमारियां है सरकारों को इसके उन्मूलन के लिए आगे आना होगा.
सन् 2011 में गैर- संचारी रोगों पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र की बैठक से पहले गैर- संचारी रोगों की रोकथाम और देखभाल पर भारत की अपनी कोई मूल नीति नहीं थी. इसके बजाय भारत सरकार इसके अंतर्गत आने वाले रोगों का अलग- अलग प्रबंधन करती थी. भारत देश के अंदर ही संक्रामक रोगों से निपटने के लिए समय निकालने की वकालत करने के बजाय विश्व स्वास्थ्य संगठन और ग्लोबल फंड और ग्लोबल एलाएंस फ़ॉर वैक्सीन ऐंड इम्युनाइज़ेशन जैसे अंतर्राष्ट्रीय दानवीरों पर निर्भर रहने की कोशिश करता है, लेकिन जब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गैर- संचारी रोगों के संबंध में अपनी नीति बदली तो नई दिल्ली ने भी आगे बढ़कर इसका स्वागत किया और अपने राष्ट्रीय संदर्भ के अनुरूप गैर- संचारी रोगों पर निगरानी रखने वाले फ्रेमवर्क के अनुरूप अपने आपको समायोजित करने लगा. लगभग दो दर्जन संकेतकों का निर्धारित लक्ष्य हासिल करने के लिए हस्तक्षेप की योजनाएँ बनाई जा रही हैं. ये योजनाएँ हैं, शराब और तम्बाकू के उपयोग में भारी कमी लाना, शारीरिक गतिविधियों को रोकने वाली बाधाओं को दूर करना, नमक और सोडियम के सेवन और इससे होने वाली अकाल मौतों में कमी लाने का प्रयास करना.
भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली की दशा और दिशा को देखते हुए इस बात पर यकीन करना मुश्किल है, क्योंकि वैश्वीकरण और बदलती जीवन-शैली के कारण जो चुनौतियाँ हमारे सामने आई हैं उनसे निपटने में हम कामयाब नहीं हुए हैं. जैसे-जैसे पुरानी या क्रॉनिक चुनौतियाँ बढ़ती जाती हैं,सरकार को उनकी रोकथाम के उपायों को भी दुगुना करना होगा. साथ ही अलग-अलग तरह की चिकित्सा और औषधियों से उपचार को भी बढ़ाना होगा. इन उपायों से उन हालातों में भी काफ़ी हद तक कमी आ सकती है, जिनके कारण मधुमेह, दिल की बीमारियाँ, कैंसर और उससे जुड़ी बीमारियाँ पैदा होती हैं.
इस समस्या से जूझने के लिए सरकार को अपनी एक ऐसी समग्र दृष्टि विकसित करनी होगी, जिसमें गैर- संचारी रोगों से निपटने में व्यापार, कृषि, परिवहन, वित्त, सड़क और बुनियादी ढाँचे से संबंधित सभी क्षेत्रों की अपनी भूमिका होगी. उदाहरण के लिए वित्त मंत्रालय मोटापे जैसी बीमारियों से जूझने के लिए स्वस्थ आहार को प्रोत्साहित करने के लिए कराधान और सब्सिडी का भी उपयोग कर सकता है. कृषि मंत्रालय स्वस्थ आहार के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के उपाय कर सकता है. उपभोक्ता मामले व खाद्य उत्पादन मंत्रालय खाद्य वितरण की कमी को दूर करने के उपाय कर सकता है. शहरी योजना से जुड़े लोग शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए खुली जगह उपलब्ध करने पर विचार कर सकते हैं और सूचना मंत्रालय स्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधियों का लाभ बताते हुए उसके प्रति लोगों में जागरूकता ला सकता है. किंग्स कालेज में डाक्टरेट कार्तिक नचिपय्यपन बताते हैं कि गैर-संचारी रोगों से संबंधित भारत की कार्ययोजना में नीति समन्वय का संकल्प तो स्पष्ट रूप में दिखाई पड़ने लगा है, लेकिन इंटर एजेंसी नीतियाँ अभी तक उभरकर सामने नहीं आई हैं.
हिलवार्ता हेल्थ डेस्क
@hillvarta.com

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