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गंगा दशहरा है 12 जून , घर के दरवाजे पर गंगा दशहरा लगाने का क्या है कारण आइये पढ़ते है @हिलवार्ता न्यूज
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हर वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को देश के अधिकतर हिस्से में गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है . इस वर्ष यह पर्व आज 12 जून 2019 को मनाया जा रहा है . इस दिन को संवत्सर का मुख भी कहा जाता है . इस दिन लोग गंगा के साथ ही दूसरी पवित्र माने जाने वाली नदियों में स्नान करते हैं और स्नान के बाद गंगा की पूजा व दान पुण्य करते हैं . हरिद्वार में श्रद्धालु नारायणी शिला में जाकर अपने पित्रों को याद करते हुए उनका पूजन भी करते हैं . माना जाता है कि इस दिन गंगा व दूसरी पवित्र नदियों में स्नान करने से घर में सुख – शान्ति होती है व समृद्धि का वास होता है . पौराणिक मान्यताओं के अनुसार , इसी दिन गंगा भगीरथ के 60 हजार पुरुखों का तारण करने के लिए स्वर्ग से भू लोेक में आयीं थी . गंगा के लोककल्याण के लिए स्वर्ग से भू लोक में अवतरण के कारण ही हर वर्ष लाखों लोग ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा का एक तरह से आभार व्यक्त करने के लिए ही उसके पवित्र जल में स्नान करके खुद को भाग्यशाली मानते हैं .
ज्योतिषाचार्य पंडित भानुप्रतापनारायण मिश्र के अनुसार , वैदिक ज्योतिष में कहा गया है कि सूर्य की वृष और चन्द्रमा की कन्या राशि में गंगा का हिमालय से निर्गमन हुआ . वैदिक व पौराणिक ग्रन्थों श्रीमद्भागवत व महाभारत आदि में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है . वामन अवतार में ब्रह्मा ने अपने लोक में नारायण के पैर धोए थे , जिससे गंगा का जन्म हुआ . मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पूर्वज भगीरथ ने अपने पूर्वजों को तारने के लिए ब्रह्मा की आराधना की तो उन्होंने भगीरथ के 60 हजार पुरुखों के तारण के लिए गंगा को पृथ्वी में जाने को कहा . तब गंगा ने ब्रह्मा से कहा कि मैं तो पृथ्वी में लोक कल्याण के लिए जाने को तैयार हूँ , लेकिन मेरा तीव्र वेग कौन थामेगा ? गंगा के इस प्रश्न का कोई उत्तर ब्रह्मा के पास नहीं था .
भगीरथ ने इस प्रश्न के हल के लिए ब्रह्मा से गुहार लगाई तो उन्होंने इसके लिए भगीरथ से महादेव की अराधना करने को कहा . शिव ने भगीरथ की अराधना से प्रसन्न होकर भगीरथ से कहा , ” बोलो , क्या वरदान चाहिए ?” तब भगीरथ ने महादेव से अपनी व्यथा कह डाली और कहा कि गंगा उनके पुरुखों के तारण के लिए भू लोक में आने को तैयार तो हैं , लेकिन उनका तीव्र वेग कौन थामेगा ? आपसे याचना है कि आप अपनी जटाओं के माध्यम से गंगा के तीव्र वेग को थामने का निवेदन स्वीकार करें “. महादेव चूँकि भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न थे और उनसे वरदान मॉगने को कह चुके थे , लिहाजा उन्होंने भगीरथ के निवेदन को स्वीकार किया और वे भू लोक में लोक कल्याण के लिए उतर रही गंगा का तीव्र वेग अपनी जटाओं के माध्यम से थामने को तैयार हो गए .
गंगा जब महादेव की जटाओं से मुक्त होकर भू लोक में उतरी तो जिस रास्ते से वह कपिल मुनि के गंगासागर स्थित आश्रम की ओर जा रही थी , वहीं रास्ते में जाहुन मुनि तपस्या में लीन थे . गंगा के तीव्र वेग से होने वाली आवाज से उनकी तपस्या में खलल पड़ा तो उन्होंने कुपित होकर पूरी गंगा को ही उदरस्थ कर एक तरह से कैद कर लिया , हॉलाकि महादेव के आदेश पर जाहुन मुनि ने गंगा को अपनी कैद से आजाद कर दिया . जाहुन मुनि द्वारा गंगा के पूरे जल को पी लिए जाने के कारण ही गंगा का दूसरा नाम जाह्नवी पड़ा . जाहुन मुनि द्वारा मुक्त किए जाने के बाद गंगा गंगा सागर स्थित कपिल मुनि के आश्रम पहुँची और भगीरथ के 60 हजार पुरुखों का तारण गंगा के पवित्र जल के स्पर्श से हुआ . जिसके बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई .
महाभारत के अनुसार , हर रोज गंगा जल पीने वाले मनुष्य के पुण्य की गणना नहीं हो सकती है . इसी वजह से सनातन धर्म का पालन करने वाले अधिकतर घरों में गंगा का पवित्र जल हमेशा रखा रहता है . जिसका उपयोग पूजा व दूसरे अनुष्ठानों में अवश्य किया जाता है . स्कंदपुराण की मान्यतानुसार , गंगा दशहरा पर गंगा में स्नान , ध्यान व दान अवश्य करना चाहिए . स्नान के बाद गंगा स्तोत्र का पाठ भी अवश्य करना चाहिए . इससे मनुष्य में सद्दविचार आते हैं और लोक कल्याण की भावना भी जागृत होती है , जिसके फलस्वरुप घर में सुख – शान्ति का वास होता है .
पौराणिक मान्यतानुसार , गंगा की पूजा करते समय उसमें उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए . जैसे दस प्रकार के फूल , दस प्रकार के ही गंध , दस दीपक , दस प्रकार के नैवेद्य , दस पान के पत्ते , दस प्रकार के फल आदि . जो लोग गंगा दशहरा के पर्व पर गंगा में स्नान के लिए नहीं जा सकते हैं , वे दूसरी नदियों में गंगा मैय्या का ध्यान करके स्नान कर सकते हैं . स्नान करते हुए उन लोगों को ” गंगे च यमुने चैव गोदावरी – सरस्वती . नर्मदे – सिन्धु – कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु ” का मंत्र बोलना चाहिए .
गंगा को कलयुग का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण तीर्थ भी माना गया है . इसी कारण कहा गया है कि गंगा के दर्शन मात्र से ही भूलोक से मोक्ष मिल जाता है अर्थात् ” गंगा तव दर्शनात मुक्ति : “. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को नदियों में गंगा भी कहा है . इस साल गंगा दशहरा का महत्व पुरुषोत्तम ( मलमास ) मास में होने के कारण और भी बढ़ गया था . मलमास के बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित भानुप्रताप नारायण मिश्र कहते हैं ,” ज्योतिष के अनुसार , चन्द्रगणना विधि से ही काल गणना की जाती है . चन्द्रमा की 16 कलाओं को आधार मानकर दो पक्ष – कृष्ण व शुक्ल पक्ष का एक मास ( महीना ) माना जाता है .कृष्ण पक्ष के पहले दिन पूर्णिमा की अवधि तक साढ़े 29 दिन होते हैं . इस प्रकार एक वर्ष 354 दिन का होता है .पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा 365 दिन व लगभग 6 घंटे में की जाती है .इस तरह से चन्द्र गणना के हिसाब से 11 दिन तीन घड़ी व 48 पल का अंतर हर साल पड़ जाता है . यही अन्तर तीन साल में बढ़ते – बढ़ते एक माह का हो जाता है . इसे ही दूर करने के लिए तीन साल में एक अधिकमास की परम्परा रखी गई है . अधिकमास के दोनों पक्षों में संक्रान्ति नहीं होती है . इस महीने शादी , नए घर में प्रवेश ( गृह प्रवेश ) , यज्ञोपवित व बहूमूल्य वस्तुओं की खरीददारी आदि वर्जित होते है ” .
अधिकमास में ही नृहसिंह अवतार ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए उसके पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यपु का वध किया था . उसने ब्रह्मा जी से वरदान मॉगा था कि मैं साल के 12 महीनों में न मरुँ , अस्त्र – शस्त्र से न मरुँ , न मनुष्य से मरुँ और न देवता – असुर से , न रात में मरुँ और न दिन में . तभी नृसिंह अवतार ने मनुष्य व सिंह का मिलाजुला रुप धारण किया और हिरण्यकश्यपु को घर की देहरी पर अपने नाखूनों से फाड़ डाला था . अधिकमास के स्वामी श्रीहरि इसलिए बने क्योंकि अन्य देवताओं ने इसका स्वामी बनने से मना कर दिया था . तभी ये यह पुरुषोत्तम मास भी कहलाया .इस महीने श्रीहरि की प्रसन्नता हेतु स्नान – दान – व्रत आदि किए जाने की परम्परा है . गंगा और दूसरी पवित्र नदियों में स्नान – ध्यान के बाद नारायण की पूजा करनी चाहिए और फिर अन्न , वस्त्र , स्वर्ण – रजत – ताम्र आदि के आभूषण व पुस्तकों का दान किया जाता है . ताकि जीवन में आए कष्ट व विपत्ति का निवारण हो सके . इस दौरान ईष्ट व कुल देवता के साथ ही प्रथम पूज्य गणेश व महादेव की पूजा भी जाती है . इसके अलावा अधिकमास के दौरान श्रीमद्भागवत , रामचरित मानस , शिव कथा आदि को पढ़ना और सुनना भी जीवन में सुख – समृद्धि के लिए अच्छा माना जाता है .
गंगा दशहरा पर कुमाऊँ में स्नान , ध्यान व गंगा का पूजन करने की परम्परा है . इसके साथ ही यहॉ के लोक जीवन में गंगा को प्राकृतिक आपदाओं व आकाशीय बिजली से बचाने वाला भी माना जाता है . यह भी मान्यता है कि इसको द्वार पर लगाने चोर , डाकु व लूटेरों का भय भी नहीं रहता है . इसी वजह से यहॉ के लोक जीवन में गंगा का विशेष महत्व है गंगा के महत्व को दर्शाने के लिए ही यहॉ हर घर के द्वार पर ” गंगा दशहरा द्वार पत्र ” लगाने की भी प्राचीन परम्परा है . द्वार पत्रों में शिव , गणेश , गंगा , हनुमान , सरस्वती आदि की आकृतियों को ज्यामितीय ढंग से बनाया जाता है . पहले कुल पुरोहित इसे विभिन्न रंगों का प्रयोग करते हुए अपने हाथ से बनाते थे और अपने हर यजमान के घर में परिवार की सुख , समृद्धि व यश वृद्धि की कामना के साथ देकर आते थे . इसके बदले में यजमान अपने कुल पुरोहित को सामर्थ्यानुसार दान – दक्षिणा देकर विदा करते थे .
गंगा दशहरा से कई दिन पहले से ही पुरोहित ” गंगा दशहरा द्वार पत्र ” बनाने में लग जाते थे , ताकि समय पर उन्हें बना सकें . अपने जिन यजमानों के गॉव में पुरोहित किसी कारण से नहीं पहुँच पाते थे तो वहॉ अपने परिवार के किसी सदस्य के हाथों द्वार पत्र अनिवार्य तौर पर भिजवाते थे . न पहुँचा पाने पर यजमान अपने पुरोहित से नाराजी व्यक्त करते थे . पर द्वार पत्र न पहुँचा पाने की घटनाएँ बहुत ही कम होती थी . पर बदलते समय व तकनीक का असर भी गंगा दशहरा के द्वार पत्रों पर भी पड़ा है . अब हस्तनिर्मित द्वार पत्र बहुत ही कम बनाए जाते हैं और बाजार में छपे हुए द्वार पत्र आसानी से मिल जाते हैं . गंगा दशहरा के दिन परिवार के सबसे बुजुर्ग महिला या पुरुष द्वार स्नान , ध्यान व पूजा के बाद घर के हर द्वार पर ” द्वार पत्र ” चिपकाया जाता है और मॉ गंगा से प्रार्थना की जाती है कि पूरे साल उनके परिवार व गॉव में सुख – समृद्धि का वास हो और परिवार व गॉव पर दुखों की छाया भी न पड़े .
ज्योतिषाचार्य पंडित बसन्त बल्लभ लेखक कुमाऊँ में गंगा द्वार पत्र लगाए जाने की परम्परा के बारे में कहते हैं ,” जब गंगा स्वर्ग लोक से लोक कल्याण की भावना लेकर भू लोक पर आयीं तो सप्तऋषि कूर्मांचल में ही तपस्या रत थे . गंगा के पृथ्वी पर आने पर उन्होंने उनका पूजन किया और उसके पवित्र जल को अपने ऊपर छिड़का . उसके बाद सप्तऋषियों ने गंगा के स्वागत के लिए अपने – अपने आश्रमों के द्वार पर द्वार पत्र लगाए .ज्योतिषाचार्य लेखक के अनुसार , गंगा द्वार पत्र कोे गृह दोष , पित्र दोष व वास्तु दोष का निवारण करने वाला भी माना जाता है . सुरेश चंद्र पंत के अनुसार , दशहरा द्वार पत्र में जो श्लोक/मंत्र लिखा जाता है वह इस तरह है :-—
” अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥1॥
मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डले॥2॥
अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥3॥
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥4॥”
इस श्लोक में सप्तऋषियों की महत्ता का वर्णन किया गया है . लेखक चन्द्रशेखर तिवारी कहते हैं ,” गंगा दशहरा के दिन कुमाऊँ में चीनी और कालीमिर्च का शर्बत पीने – पिलाने की भी परम्परा है . माना जाता है कि इस दिन यह शर्बत मिले से मनुष्य पूरे साल निरोग रहता है . गंगा दशहरा को इस तरह मनाने की यह अलग परम्परा कुमाऊँ में है.
जगमोहन रौतेला
वरिष्ठ पत्रकार की रिपोर्ट
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