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उत्तराखण्ड

Assembly election 2022 uttrakhand: नैनीताल जिले की छः सीटों पर कैसे समीकरण हैं, पढिये वरिष्ठ पत्रकार प्रयाग पांडे की विशेष रिपोर्ट @हिलवार्ता

नैनीताल- चंद दिनों बाद 14 फरवरी को उत्तराखंड विधानसभा के लिए वोट डाले जाने हैं,पर अबकी पहाड़ में चुनावी रंग फीका है।इस चुनाव में न कोई मुद्दा है और न यहाँ किसी पार्टी या नेता की लहर नज़र आ रही है। कोविड संक्रमण के चलते चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से रंग-बिरंगे चुनावी झंडे,बैनर और पोस्टर तकरीबन नदारत हैं। लाउड स्पीकरों की तादाद और शोर और चुनावों के मुकाबले बहुत कम है।

यह उत्तराखंड विधानसभा का पांचवां चुनाव है।इस चुनाव में अपनी राजनीतिक संस्कृति और प्रवृत्ति के विपरीत उत्तराखंड दल-बदल के दल-दल में बुरी तरह फंस गया है।सभी सियासी दलों में जबरदस्त भगदड़ मची है।चुनावी घमासान में सियासी सुचिता, नैतिकता, भ्रष्टाचार, बेईमानी जैसे नारों और परिवारवाद विरोधी कथित मुहिम की हवा निकल गई है।हर हाल में सत्ता पाने की ललक में सभी दलों ने अपने वैचारिक एवं सैद्धांतिक मूल्यों को तिलांजलि दे दी है।नतीजतन सभी दलों को ज्यादातर सीटों में खुद के नेताओं और कार्यकर्ताओं के असंतोष और बगावत का सामना करना पड़ रहा है।बागियों और भितरघातियों ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी, दोनों की नींद उड़ा रखी है।

उत्तराखंड के महत्वपूर्ण जिले नैनीताल में अबकी दिलचस्प चुनावी मुकाबला हो रहा है।जिले की लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के मैदान में उतरने से यह सीट यकायक चर्चा में आ गई है।हरीश रावत कांग्रेस के बड़े नेता हैं और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। इस बार उत्तराखंड में कांग्रेस की चुनावी वैतरणी पार होने की सूरत में उन्हें मुख्यमंत्री का प्रबल एवं स्वाभाविक दावेदार माना जा रहा है।इस लिहाज से लालकुआं की सीट पर पक्ष और विपक्ष दोनों की पैनी निगाह है।

हरीश रावत 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हरिद्वार ग्रामीण और ऊधमसिंह नगर की किच्छा दोनों जगह से चुनाव हार गए थे।इस बार उन्हें कांग्रेस ने पहले नैनीताल जिले की रामनगर सीट से टिकट दिया था।पार्टी ने लालकुआं से संध्या डालाकोटी को कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित किया था।कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के कारण लालकुआं से पूर्व घोषित प्रत्याशी संध्या डालाकोटी का टिकट काटकर हरीश रावत को रामनगर के बजाय लालकुआं से टिकट दे दिया गया है। टिकट मिलने के बाद कटने से नाराज संध्या डालाकोटी अब आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं।उन्होंने इसे महिलाओं के सम्मान का मुद्दा बना दिया है।इस बहाने संध्या डालाकोटी प्रियंका गांधी के ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ ‘ नारे की खिल्ली भी उड़ा रही हैं।पूर्व मंत्री हरीश दुर्गापाल और हरेंद्र बोरा के हरीश रावत के पक्ष में खुलकर मैदान में उतरने से कांग्रेस का पलड़ा भारी पड़ा है।पर अब भी चुनावी लड़ाई आसान नजर नहीं आ रही है।

लालकुआं से भारतीय जनता पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक नवीन दुम्का को टिकट न देकर मोहन सिंह बिष्ट को अपना उम्मीदवार बनाया है।नगर पंचायत लालकुआं के पूर्व चेयरमैन पवन चौहान भाजपा के बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं। लालकुआं विधानसभा सीट में आम आदमी पार्टी, बसपा, सपा और माकपा माले समेत कुल तेरह उम्मीदवार मैदान में हैं।चुनाव की तारीख नजदीक आते चुनावी संग्राम कांग्रेस और भाजपा के बीच सिमट जाने के आसार नजर आ रहे हैं।बागी प्रत्याशियों का प्रदर्शन और भितरघात चुनाव के नतीजों को उलट- पलट सकता है। कुलमिलाकर यहाँ हरीश रावत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।टिकट में उलट-फेर से कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन को लेकर भी सवाल उठे हैं।

नैनीताल सीट भारतीय राजनीति में हावी होती सत्तालोलुपता और अवसरवादिता का जीवंत प्रमाण बनी हुई है।यहाँ मुख्य सियासी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार पिछली चुनाव वाले ही हैं ।फर्क सिर्फ इतना है कि इस मर्तबा उनके चुनाव निशान बदल गए हैं।पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते संजीव आर्या इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी हैं।जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार पूर्व विधायक सरिता आर्या कांग्रेस के बजाय अबकी हाथ में कमल का फूल लेकर वोट माँग रही हैं।संजीव आर्या कुछ महीने पहले भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए हैं।कांग्रेस में टिकट पाने की संभावनाएं क्षीण होती देख सरिता आर्या ने कुछ ही दिन पहले भाजपा का दामन थामा है।पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर बाहर से आए नेताओं को टिकट देने से भाजपा के भीतर अप्रकट असंतोष है।काबिलेगौर बात यह है कि देश की राजनीति को बदलने के लिए अवतरित कथित एकमेव ईमानदारी पार्टी आम आदमी पार्टी ने पूर्व घोषित प्रत्याशी के नामांकन पत्र दाख़िल कर देने के बाद अपने उम्मीदवार का टिकट काटकर भाजपा और कांग्रेस से हताश हेम आर्या को टिकट दिया है।यहाँ उत्तराखंड क्रांति दल और बहुजन समाज पार्टी समेत कुल पाँच उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।असल चुनावी लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है।

हल्द्वानी सीट से कांग्रेस ने पार्टी की वरिष्ठ नेता रहीं स्वर्गीय इंदिरा ह्रदयेश के बेटे सुमित ह्रदयेश को अपना उम्मीदवार बनाया है।भाजपा ने हल्द्वानी नगर निगम के मेयर डॉ. जोगेन्द्र पाल सिंह रौतेला को चुनाव मैदान में उतारा है।यहाँ आप, सपा,बसपा, यूकेडी समेत तेरह उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।हल्द्वानी सीट में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला नज़र आ रहा है।

भीमताल विधानसभा सीट में भाजपा से रामसिंह कैड़ा, कांग्रेस से दानसिंह भंडारी समेत दस उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे दानसिंह भंडारी 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर भीमताल से विधायक चुने गए थे।बाद में उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया था।उन्होंने 2017 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा।लेकिन चुनाव जीत नहीं सके।निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर रामसिंह कैड़ा विजयी हुए।कुछ वक्त पहले रामसिंह कैड़ा भाजपाई हो गए हैं।पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है।पार्टी के इस निर्णय को लेकर कुछ पुराने कार्यकर्ताओं में नाराजगी है।भाजपा से जुड़े मनोज साह अब बागी उम्मीदवार हो गए हैं।यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव परिणामों बगावत का कितना असर पड़ता है।फिलवक्त यहाँ चुनावी संग्राम कांग्रेस और भाजपा के बीच ही नजर आ रहा है।

कालाढूंगी विधानसभा सीट में भाजपा सरकार में मंत्री बंशीधर भगत फिर से चुनाव लड़ रहे हैं।यहाँ पहले कांग्रेस ने पूर्व सांसद डॉक्टर महेंद्र सिंह पाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया था।बाद में उन्हें रामनगर सीट से टिकट दे दिया गया है।अब कांग्रेस ने यहाँ से पिछले विधानसभा चुनाव में बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े महेश शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है।यहाँ आप, सपा, बसपा सहित कुल ग्यारह उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।यहाँ असल चुनावी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है।

रामनगर सीट से कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का टिकट कटने के बाद यह सीट भी चर्चा का केंद्र बन गई है।कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत यहाँ से पार्टी के टिकट के तलबगार थे।उन्होंने 2017 का चुनाव यहीं से लड़ा था, पर जीत न सके थे।अबकी उनकी स्थिति उम्दा दिखलाई पड़ रही थी।कांग्रेस आलाकमान ने रामनगर से हरीश रावत को पार्टी का उम्मीदवार घोषित कर दिया।जाहिर है कि रणजीत सिंह रावत ख़फ़ा हो गए।अंततः पार्टी को बीच का रास्ता निकालने पर विवश होना पड़ा।हरीश रावत को लालकुआं भेज दिया गया।कालाढूंगी से टिकट पाए डॉक्टर पाल को रामनगर से टिकट दे दिया गया।रणजीत सिंह रावत को सल्ट से चुनाव मैदान में उतारा गया है।रामनगर में अब कांग्रेस से डॉक्टर महेंद्र सिंह पाल,भाजपा से विधायक दीवान सिंह बिष्ट समेत ग्यारह उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं।डॉक्टर पाल छात्र नेता रहे हैं।वे दो मर्तबा नैनीताल से सांसद रह चुके हैं।मौजूदा समय में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।जबकि भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट 2007 और 2017 में दो बार रामनगर से विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं।सर्वसुलभ नेता के रूप में उनकी पहचान है।इस लिहाज से रामनगर सीट में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही चुनावी संघर्ष होने के आसार नजर आ रहे हैं।
हार-जीत की इस चुनावी लड़ाई में पहाड़ की आम जनता से सरोकार रखने वाले मुद्दे सिरे से नदारत हैं।मौजूदा वक़्त में सत्ता में काबिज भाजपा और सत्ता की प्रबल दावेदार कांग्रेस में जुबानी आरोप -प्रत्यारोप की होड़ में पहाड़ के आम आदमी से जुड़े असल और जमीनी मुद्दे मुरझा गए हैं । जल, जंगल, जमीन, बाँध, खदान,पर्यावरण, पर्यटन, रोजगार, पलायन ,शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क,उद्योग, प्राकृतिक आपदा, पुनर्वास, परिसंपत्तियों का बंटवारा और जंगली जानवरों की आबादी वाले क्षेत्रों में बढ़ती घुसपैंठ आदि मुद्दे गायब हैं। पहाड़ की ‘पहाड़’ जैसी समस्याओं के प्रति असंवेदनशील कांग्रेस और भाजपा का एकमात्र राजनैतिक ध्येय सत्ता पाने और उसमें बने रहने तक सिमट गया है।हरेक पाँच साल में रोटी पलटना उत्तराखंड की सियासी नियति बन गई है।देखना दिलचस्प होगा कि इस मर्तबा यह परंपरा टूटती है या नहीं।

 

@हिलवार्ता न्यूज डेस्क 

 

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