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जालली, मासी अल्मोड़ा निवासी काष्ठ कला प्रेमी ने दिल्ली छोड़ गांव में बनाया बसेरा,पारंपरिक कला को बढ़ाया आगे, पूरा पढ़िए@हिलवार्ता
जनपद अल्मोडा के सुदूरवर्ती क्षेत्र जालली में रहने वाले राधेश्याम उतराखंड की पारंपरिक काष्ठ कला को आगे में बड़ी शिद्दत के साथ लगे हुए हैं,उनके इस कौशल को बढ़ाने में उनकी पत्नी गायत्री सहयोग प्रदान करती हैं.
दिल्ली में 15 साल की नौकरी की. मन नहीं लगा और लौट आये अपनी जड़ों की ओर, जब मन मे कला बसी हो दुनियां की कितनी बड़ी खुशी भी बेकार, यही हुआ राधेश्याम के साथ, जो 2010 में इसी जज्बे के साथ कि अपनी परंपरा से जुड़ी कला में ही जीवन की रसद खोजी जाय वापस आ गए और उनका सपना साकार भी हो रहा है जगह जगह प्रदर्शनी में उनकी कला के कद्रदान बढ़ रहे हैं.
हुनरमंद काष्ठ शिल्पी हैं राधेश्याम. उन्होंने स्थानीय वस्तुओं का बखूबी उपयोग किया है जैसे किल्मोड़ा की जड़,बगेट (चीड़ के पेड़ की छाल),तिमुर की लकड़ी,बाँस,शीशम,सागौन के बचे हुए टुकुड़े, जहां आम आदमी के लिए ये चीजें बेकार है राधेश्याम के लिए यही सर्वाधिक महत्वपूर्ण.
विभिन्न सुंदर-सुंदर आकृतियां तैयार करना उनका जुनून है उनकी बनाई भगवान गणेश,केदारनाथ मंदिर,फ्लावर पॉट,कैंडल स्टैंड ,होटल, रथ, नाव,बच्चों के खिलौने,चिड़ियां आप देखते रह जाएंगे.अब तक राधेश्याम 1000 कलाकृतियों का नायाब संग्रह तैयार कर चुके है,साल 2016 में भारत सरकार के हस्तशिल्प पुनरुत्थान संबंधी स्वर्ण जयंती समारोह में उन्हें अपनी कला को प्रदर्शित करने का मौका मिला,उनकी काष्ठ कला को बहुत अधिक सराहा गया,उनके हौसले बुलंद है.
संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के तत्वावधान में संचालित संस्थान सीसीआरटी से जुड़े गौरीशंकर काण्डपाल ने उनसे मुलाकात के दौरान उनकी कला का अवलोकन किया और यह रपट भेजी श्री कांडपाल ने बताया कि उन्हें सरकार के द्वारा काष्ठ कला के क्षेत्र में प्रदान की जाने वाली योजनाओं की जानकारी दी,जिससे उनकी कला को आगे बढ़ने में सहायता मिले और राधेश्याम की कला को पंख लग दुनिया उनकी कला का अवलोकन कर सकें.
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
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