उत्तराखण्ड
देवभूमि में सभी देवता ही, धर्मनगरी में धार्मिक ही हैं ,यह कहने की बात है जनाब आइये पढ़ें , रिपोर्ट जो बहुत कुछ साबित करती है ।
- उत्तराखण्ड को एक और नाम से हम सब जानते हैं देवभूमि और यहां के सुप्रसिद्ध नगर हरिद्वार का नाम धर्मनगरी है यूं ही दोनो की साख पर कुछ लोगों के स्वार्थ ने बट्टा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । राज्य की जनता को किसी तरह के कष्ट और दुखों से उबारना चुनी हुई सरकारों का दावित्व होता है । और किसी व्यक्ति संस्था को कोई कार्य करने की जिम्मेदारी दी गई वह उसे सही मनोयोग से करता /करती है इसी को धर्म कहा गया है । लेकिन राज्य राज धर्म की रक्षा करने में कितना कमजोर है इन घोटालो से समझा जा सकता है ,विभाग में जो हुआ सबके सामने है आठ साल में सरकारें आयी और गई,करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ कोई अपने कर्तव्य से भागते रहा ,किसी को कानों कान खबर भी ना लगे लगता नहीं,खैर ,
इतना तो माना ही जाना चाहिए ,अपने कर्तव्य से भागना अधर्म है इससे आगे यह किसी भी अधर्म से बड़ा अधर्म है कि कोई समाज के सबसे गरीब तबके के नाम से वजीफा हड़प ले और हड़पने देवे ।उत्तराखंड छात्रवृत्ति घोटाले में हरिद्वार जिले में सर्वाधिक संस्थान घोटाले में शामिल हैं फिर देहरादून, उधमसिंह नगर का है टेकवर्ड वली ग्रामोद्योग विकास संस्थान ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूसन्स जो केनाल रोड हरिद्वार में स्थित बताई गई है यहां भी पूर्ववर्त्ती गिरफ्तार लोगों की तर्ज पर घोटाला हुआ है आज एसआईटी ने संस्थान के अध्यक्ष प्रदीप अग्रवाल कोषाध्यक्ष मो.नूरूद्दीन सहित सचिव संजय बंसल को 2 करोड़ 54 लाख 10 हजार रुपये के घोटाले में संलिप्तता की सबूतों के साथ गिरफ्तार किया है तीनो को 6 मार्च को जेल भेज दिया जाएगा ।गौरतलब है कि पिछले एक हप्ते में 6 लोगों की गिरफ्तारी हुई है इन जिलों में 25 से ऊपर प्रतिष्ठान एसआईटी के रडार पर हैं जिनकी गहन जांच चल रही है और इसमें कई और गिरफ्तारियां हो सकती है ।
अनुमानित 500 करोड़ के इस घोटाले में शामिल अधिकतर इंस्टिट्यूसन्स उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी से संबद्ध रहे हैं इस सारे प्रकरण में टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने किन किन संस्थानों को किस तरह संबद्धता दी यह भी जांच का विषय है जानकर बताते हैं कि टेक्निकल यूनिवर्सिटी में तत्कालीन कुलपति और रजिस्ट्रार जिसको आजकल किसी अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया की भी संलिप्तता जांची जानी जरूरी है ।इस पूरे प्रकरण में मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश अप्रैल 2017 में दिए ,उसके बाद भी जांच को दबा देना , दो साल तक विभाग के अधिकारियों द्वारा देरी करना शक को गहराता है सभी कारणों की भी जांच सरकार कराएगी यह देखना होगा, यह भी इस कि घोटाले में भुगतान से पहले किन किन उच्चअधिकारियों की मिलीभगत है सरकार उनके खिलाफ किस तरह पेश आएगी ।
एसआईटी लगभग हर रोज घोटाले का पटाक्षेप कर रही है ,
यह साफ परिलक्षित हो रहा है कि इन घोटालों में और बड़े नाम आएंगे और यह भी साबित कर दिया कि देवभूमि में देवताओं का और धर्मनगरी में धार्मिकता से सम्बंध बिगड़ चुका है,यहां अधार्मिकों का वर्चस्व है उत्तराखण्ड घोटालों की शरणस्थली में तब्दील हो रहा है जिसका समुचित समाधान जनता सहित जनता के सरोकारों वाली सरकारों को ढूढना होगा ।
Hill varta news desk