उत्तराखण्ड
कुमायूँ विश्वविद्यालय के कुलपति ने हिलवार्ता से कहा,मेरे पत्र को केवल सुझाव समझा जाए,मेरा मकसद पढ़ना पढ़ाना, किसी की भावनाओं को ठेस पहुचना नहीं,जताया खेद.पूरा समाचार पढ़िए
पिछले तीन चार दिन पहले पीएम को लिखे पत्र के बाद से बहस का केंद्र बने, कुमायूँ विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ के एस राणा ने हिलवार्ता से विस्तृत बातचीत में कहा कि उनका उद्देश्य उत्तराखंड की जनभावना के खिलाफ नहीं है, और ना ही वह इस मुद्दे पर आगे किसी तरह की बात करना चाहते हैं, और उन्होंने कहा कि उनके बयान /पत्र से किसी भी व्यक्ति/ संस्था को ठेस पहुची है तो वह खेद व्यक्त करते हैं.
यह पूछे जाने पर कि इस तरह का पत्र लिखने की मंशा क्या है और यह भी कि एकेडमिक पद पर बैठे व्यक्ति इस तरह का राजनीतिक बयान किस तरीके से देखा जाए, के जबाब में कुलपति ने कहा कि तीन साल पहले यह मुद्दा उठा था एक मीटिंग में इस विषय पर चर्चा हुई थी इसी को दृष्टिगत यह बात औपचारिक रूप तीन दिन पहले उठी कि राज्य की बेहतरी के लिये क्या किया जाना चाहिए चर्चा के दौरान हुई बातचीत के बीच ही उन्होंने यह पत्र लिखा, जिस पर प्रतिक्रियाओं का सिलसिला चल पड़ा है.
कुलपति कहते हैं वह मूल रूप से राजस्थान के निवासी हैं उनका यूपी के इन जिलों को उत्तराखंड से मिलने मिलाने की कोई स्वार्थ नहीं है ना ही उनका अपना कोई नफा नुकसान है,इसे सिर्फ सुझाव तक रखा हुआ समझा जाना चाहिए.कुलपति से पूछने पर कि उन्होंने किसी राजनीतिक दबाव में इस तरह की बात तो नहीं की.उन्होंने कहा कि यह उनका स्वयं का व्यू पॉइंट था.
हिलवार्ता ने जब कहा कि उत्तराखंड का निर्माण जमीन के भूभाग का बंटवारा नहीं था यह सांस्कृतिक और भोगोलिक आधार पर लंबे आंदोलन के बाद प्राप्त हुआ राज्य है इसलिए इसमें किसी तरह की छेड़ छाड़ उत्तराखंडियों का अपमान होगा, अगर उसी उत्तरप्रदेश के इन जिलों को मिला दें तब राज्य की क्या जरूरत क्यो थी,राज्य की मांग ही दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मौजूद राजनितिक दलों की उपेक्षा के कारण हुई तब इस तरह की मांग से राज्य की मूल भावना समाप्त नहीं हो जाएगी.
कुलपति ने कहा कि पलायन और अन्य समस्याओं से निपटने के लिए दिए मेरे सुझाव पर राज्य वासियों को अगर ठेस पहुची है तो उन्हें खेद व्यक्त करने में बिल्कुल भी झिझक नहीं है अब इसे यहीं खत्म कर देना चाहिए.उन्होंने कहा कि वह जानते हैं कि पर्वतीय क्षेत्र गरीबी पलायन से जूझ रहा है इसी लिए उन्होंने कुमायूँ विश्वविद्यालय में बीए एग्रीकल्चर विषय की पैरवी की और कक्षाएं शुरू करवा दी हैं आगे भी विश्वविद्यालय स्तर पर प्रोफेशनल कोर्सेज लाये जा रहे हैं जिससे क्षेत्र के युवाओं को बेहतर जगह रोजगार मिले मेरे प्रयासों को एक बयान से छोटा नहीं किया जाना चाहिए.
लगातार सोशल साइट्स पर छा रहा यह मुद्दा ट्रोल किया जा रहा है कुलपति के बयान पर अलग अलग प्रतिक्रियाएं आना जारी हैं कुलपति ने अपनी प्रतिक्रिया दे दी है अब देखना होगा कुलपति के आज के बयान की क्या प्रतिक्रियाऐं आती हैं.बहरहाल कुलपति एकेडमिक क्रियाकलापों पर केंद्रित होने की बात कर रहे हैं.
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
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