उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड में तबादला एक्ट लागू होने के वावजूद,चहेतों को मनचाही जगह भेजने का हुआ खेल, मंत्री का खत और खुलासा पूरा पढ़िए @हिलवार्ता
उत्तराखंड में ट्रांसफर सबसे पेचीदा मामलों में एक है,राज्य का बड़ा क्षेत्र पर्वतीय है सरकारों ने सभी सुख सुविधाएं मैदानी क्षेत्रों तक समेट दी. इसलिए शिक्षा चिकित्सा से महरूम पर्वतीय क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों का स्वास्थ्य को लेकर मैदानों में आने के शिवा कोई चारा नही था धीरे धीरे जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक थी ने घर परिवार को मैदानी क्षेत्रों की तरफ बसाना शुरू कर दिया.वर्ष 2005 तक लगभग पहाड़ में कार्यरत कार्मिकों में मानो होड़ सी शुरू हो गई कि जैसे तैसे हल्द्वानी देहरादून ऋषिकेश हरिद्वार टनकपुर खटीमा रुद्रपुर काशीपुर जैसे क्षेत्रों में एक घर बना बच्चों को शिफ्ट कर खुद पहाड़ में नौकरी की जाय.
सरकार से नजदीकी रखने वाले अफसरों मंत्रियों के खास नेताओं और चापलूस तरह के कार्मिकों ने अपने स्थानांतरण मैदान में करवा लिए जिससे पहाड़ में सेवारत कर्मचारियों में नाराजी होना वाजिब है हुआ यह कि हर कोई किसी तरह से मैदान में आने की जुगत लगाने लगा 2006 तक यहां तक नॉबत आ गई कि पैसे लेकर देकर स्थानान्तरण होने लगे,2010 तक उत्तराखंड ट्रांसफर इंडस्ट्री बन गया.इस बीच शिक्षक कर्मचारी संगठनों ने सरकार पर अपने लोगों और स्थानांतरण पर सवाल जबाब शुरू कर दिए तमाम दबाओं के बाद सरकारों को तबादला एक्ट बनाना पड़ा इसमे भी हुक्मरानों को पूरे 18 साल लगे.वर्ष 2017 से कई तरह की बातचीत के बाद नियमावली के लिए काम शुरू हुआ 2018 आते आते एक्ट बन गया. जिसे 7 फरवरी 2018 को लागू करने में कैबिनेट ने मुहर लगा दी .एक्ट को लागू करने की खबर को खूब सराहना मिली, प्रमुख सचिव उत्पल कुमार सिंह ने एक्ट पर बताते हुए इसे बहुत पारदर्शी बताया प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि तबादला एक्ट के आ जाने के बाद अब किसी तरह की गड़बड़ी की आशंका स्वतः समाप्त हो जाती है.
लेकिन 2018 का एक बड़ा मामला आरटीआई से खुला है एक्ट लागू होने के कुछ समय बाद ही कि एक्ट के दुरुपयोग किया गया दुरपयोग किसी कार्मिक या अधिकारी ने नहीं खुद विभागीय मंत्री ने किया और उस पत्र में खुद मुख्यमंत्री महोदय की अनुसंसा है.2019 आते आते जिस तरह की सूचनाएं प्रप्त हो रही है उससे साफ है कि एक्ट जरूर बन गया है लेकिन चहेतों के स्थांतरण में, एक्ट का खुले आम वायलेसन हो रहा है यह बात चौकाने वाली है कि तबादला एक्ट में ट्रांसफर लिस्ट को सीमिति द्वारा फाइनल किया जाता है एक्ट के अनुसार केवल विशेष परिस्थितियों में ही नियमों में शिथिलता की जा सकती है लेकिन आरटीआई से साफ दिखता है जिन 15 प्राध्यापकों का ट्रांसफर रोका गया या अन्यत्र किया गया या सुगम में लाया गया उनमें से अधिकांश एक्ट के नियमों के तहत नहीं किये गए.
सरकार अपने द्वारा बनाई गई ट्रांसफर नीति पर अपनी जितनी पीठ थपथपाए लेकिन उसमें भी छेद है पारदर्शिता कितनी है यह उक्त आरटीआई से पता चलता है.एक्ट के लागू होने के बाद क्या हुआ की जानकारी आरटीआई से प्राप्त सूचना से एक साल बाद हुई है.चूंकि ट्रांसफर लिस्ट स्थानांतरण सीमित द्वारा तय किये जाते हैं अतः इसमे किसी तरह फेरबदल तबादला कानून उल्लंघन है लेकिन उत्तराखंड में कुछ भी संभव है वैसे ही नहीं कहा जाता यह उनके लिए है जो सालों से ऊंची पहुच के चलते विभागों में खुद को अटैच किये हैं उन्हें क्या डर उनके लिए किस तरह का कानून ठीक ही कहा है. जब सय्या भए कोतवाल तो डर काहे का ।
इस सब मे खामियाजा उन प्राध्यापकों को भुगतना पड़ता है जिनको ट्रांसफर लिस्ट में नियमानुसार विद्यालय मिलता है लेकिन सरकारी दखलंदाजी से उनका स्थान किसी चहेते को मिल जाता है. उच्च शिक्षा में ट्रांसफर के केश देख रहे हाईकोर्ट नैनीताल के अधिवक्ता मयंक जोशी बताते हैं कि सरकार की स्थानन्तरण पालिसी लचर है एक्ट लागू होने के बाद कई मामले आ रहे हैं जिनमे गंभीर बीमार को अति दुर्गम में तक भेजा गया है उन्होंने बताया कि कई मामले निदेशालय स्तर के भी हैं जिनमे न्याय विरुद्ध निर्णय लिए गए हैं.
सरकार लाख दावा करे लेकिन इन प्रकरणों से साफ है की स्थानन्तरण लिस्ट निकल जाने के बावजूद कई रास्तों से चहेतों की उनके पसंद की जगह तैनाती की जाती है.सरकार कहती है पूरी पारदर्शिता की गई है लेकिन 2018 में हुए इन समायोजनों में पत्र से ज्ञात होता है कि शिक्षा मंत्री ने अपने पसन्दीदा लोगों को उनके पसंदीदा जगहों पर ट्रांसफर किये.
राजकीय उच्च शिक्षा शिक्षक संगठन ने भी सरकार की स्थानन्तरण नीति पर सवाल उठाए हैं उन्होंने कहा है कि वर्षों से एक ही स्थान पर कई शिक्षक डेरा जमाए बैठे हैं वहीं गंभीर बीमारी से पीड़ित शिक्षकों के साथ न्याय नहीं किया जा रहा है उन्हें अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं तब भी कोई सुनवाई नहीं होती जबकि सरकार के चहेते यथास्थान बने रहने या पसंदीदा स्थान आसानी से पा लेते हैं संगठन के अध्यक्ष डॉ एच एस भाकुनी ने तबादला एक्ट को पारदर्शिता से लागू करने की मांग के साथ साथ कहा है कि एक्ट में किसी भी तरह का हस्तक्षेप एक्ट की मूल भावना को समाप्त करता है.
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
@hillvarta.com