उत्तराखण्ड
Big breaking: उत्तराखंड में चुनाव पूर्व सियासी ड्रामा चालू आहे । अब हरक सिंह रावत को पार्टी और केबिनेट से निकाले जाने की खबर : देर रात हुआ सब कुछ पढ़िए @हिलवार्ता
राज्य निर्माण के 21 साल दर्जनों इधर से उधर । राज्य में एक दर्जन के करीब मुख्यमंत्री, सैकड़ों मंत्री राज्यमंत्री विधायक और न जाने कितने लालबत्ती धारक । यही उत्तराखंड की परिणति बन चुका है ।
राज्य में हर चुनाव में दो चार इधर उधर नही हुए तो पता नही चुनाव सा लगता ही नहीं है। शाम होते होते खबर आई कि हरक सिंह रावत फिर नाराज हैं मामला इस बार पुत्र वधु को टिकट का बताया जा रहा है । एक पखवाड़े पहले हरक सिंह की रोने धोने का वीडियो सामने आया जिसमे वह सिसकी मारते हुए खुद को भाजपा में अपमानित समझ रहे थे और मांग कर रहे थे कि उनकी सुनी जाए उन्हें कोटद्वार में मेडिकल कालेज चाहिए आदि आदि । फिर पार्टी की तरफ से डेमेज कंट्रोल हुआ मुख्यमंत्री धामी और उनकी मुलाकात का हसी के ठहाके के साथ वीडियो रिलीज हुआ लगा सब ठीक ठाक है ।
इधर हलद्वानी में पीएम की रैली में मोदी जा जयकारा सबसे ज्यादा हरक सिंह ने ही लगाया माना जा रहा था कि सीएम ने डेमेज कंट्रोल कर लिया है । लेकिन आज दुबारा हुए ड्रामे ने 2022 की नई कहानी गढ़ ली है वही कहानी जो आज से पांच साल पहले कांग्रेस में रहते हुए हरक सिंह ने लिखी थी और भाजपा ने हाथोंहाथ लपक ली थी ।
बताया जा रहा है कि दिल्ली पहुचे हरक को कांग्रेस ने मांन ली है और उनकी पुत्रवधु को टिकट मिल जाएगा । इधर खबर की जानकारी मिलते ही कल तक निश्चिन्त बैठी भाजपा ने हरक को कैबिनेट और पार्टी से बाहर कर दिया है । जिसकी पुष्टि होने का इंतजार है ।
यही हाल कांग्रेस का है यहां दो दिन पहले ही कांग्रेस अपने पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को बाहर का रास्ता दिखा चुकी है जबकि उसकी महिला प्रदेश अध्यक्ष के बगावती तेवर वाली तस्वीरे और वीडिया वॉयरल हैं कि वह टिकट मिलने पर भाजपा में जा सकती हैं ।
कुछ माह पूर्व सूबे के पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य अपने विधायक बेटे संग भाजपा को बाई बाई कर कांग्रेस में लौट चुके हैं । सूत्र बताते हैं कि टिकटों को लेकर चल रही रस्साकस्सी अभी कइयों को इधर उधर जाने का रास्ता तैयार करेगी ।
नवोदित राज्य में स्थिर सरकार की पैरवी करने वाले दोनों राष्ट्रीय दलों में विगत 20 साल में एक दर्जन मुख्यमंत्री होना अवसरवादी राजनीति का जीता जागता उदाहरण है यहां दलों की छोड़िए संगठन के भीतर भीतरघात है । जिसकी भरपाई किसी न किसी रूप में राज्य की जनता भुगत रही है । राज्य की माली हालत जगजाहिर है । कर्जे के भार से दबा राज्य नेताओं की महत्वाकांशा का शिकार है ।
हिलवार्ता न्यूज डेस्क