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उत्तराखण्ड

भावनात्मक रिश्ता है काफल संग उत्तराखंडियों का, किस तरह पहाड़ से जोड़ता है एक फल. और कैसा है इस बार काफल का हाल,आइये पढ़ें @ हिलवार्ता न्यूज

काफल उत्तराखंड के पर्वतीय मिश्रित जंगलों में पाया जाने वाला मीठा बेरी की तरह का फल है जो यहां के लोगों के मुह में अनायास ही पानी ले आता है, यूं कह लीजिए जैसे पहाड़ और काफल एक दूसरे का पर्याय हैं .काफल से स्थानीय परम्पराएं जुड़ी हैं इसलिए इसके लिए दीवानगी होना लाजिमी है,गर्मियों में पर्वतीय इलाके में जाना हो तो सड़कों के किनारे छोटे बच्चे हाथ मे ताजा काफल लिए खड़े रहते हैं गाड़ी देख उनका काफल काफल कहना और उनसे काफल खरीदना अनोखा अनुभव देता है काफल का स्वाद लंबी थकान हो या उबाऊ यात्रा,आपके मन मस्तिष्क को मानो चेतन कर देता है .
गर्मी में बच्चों की छुट्टियों होते ही उत्तराखंड के प्रवासी अपने अपने घरों की ओर आते हैं घर आते समय कुछ बातें सबके लिए कॉमन है एक प्राकृतिक झरने या स्रोत से पानी भरना दूसरा अगर कहीं काफल दिख जाए काफल का मोह । अगर किसी कारण काफल देख भी गाड़ी नहीं रुकी यह सोचा कि अगले मोड़ पर ले लेंगे और आपको काफल नहीं मिले तब जो आत्मग्लानि होती है वह किसी अपराधबोध से कम नहीं.
जी हां पहाड़ के लोगों का इतना प्यार है काफल के लिए । जैसी सूचना मिल रही है वह काफल प्रेमियों को विचलित करने वाली है इस बार काफल की कुल आमद बहुत कम है जिन इलाकों में काफल बहुतायत में होता है वहां अप्रैल माह में हुई ओलावर्ष्टि ने काफल को नुकसान पहुचाया है.
काफल का पेड़ विशेषकर मिश्रित प्रजाति के जंगलों में होता है जहां बांज बुरांस उतीस जैसे चौड़ी पत्ती वाले जंगलों के बीच पाया जाता है कुमायूँ में इस तरह के जंगल धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं वैसे तो कुमायूँ गढ़वाल में लगभग सभी गांव कस्बों में काफल के पेड़ हैं लेकिन कुमायूँ में लोहाघाट चम्पावत, देवीधुरा ओखलकांडा धौलादेवी लमगड़ा दारुण पट्टी कौसानी के पास लौबंज कमेड़ी देवी धरमघर बेरीनाग और गंगोलीहाट के बीच पातालभुवनेश्वर के पास थल मुवानी रूट काफल बिक्री के महत्पूर्ण पड़ाव हैं.
पर्वतीय उच्च इलाकों और आसपास से पिथोड़ागढ़ अलमोड़ा चंपावत के कस्बों तक काफल वहां के लोगों तक आता है देवीधुरा पहाड़पानी सहरफाटक ध्यानाचूली मुक्तेश्वर जैसे इलाकों से नैनीताल हल्द्वानी रुद्रपुर खटीमा सितारगंज तक काफल आता है ग्रामीणों की छोटी मोटी आमदनी काफल तोड़कर बेचने से होती है बच्चों का जेब खर्च निकलना आम बात है काफल दरसल टूटने के 12 घण्टे में ही खराब होने लगता है इसलिए ज्यादा दूर इसकी मार्केटिंग मुश्किल है काफल को 24 /36 घण्टे अगर सुरक्षित रखने के उपाय ढूंढ लिए जाएं निःसन्देह काफल उत्तराखंड का गर्मियों में उपलब्ध पसंदीदा ब्रांड बन सकता है .
ओपीपाण्डेय
@ एडिटर्स डेस्क
hillvarta. com

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