उत्तराखण्ड
अमित श्रीवास्तव के "गहन है यह अन्धकारा' उपन्यास के विमोचन पर सम्पन्न हुई परिचर्चा, वक्ताओं ने कहा यह उपन्यास संग दस्तावेज भी है पुलिस महकमे में सुधारों के लिए,आगे पढ़िए @हिलवार्ता
हल्द्वानी नैनीताल रोड स्थित रेस्टोरेंट में पुलिस अधीक्षक विजिलेंस श्री अमित श्रीवास्तव के उपन्यास “गहन है यह अन्धकारा” का विमोचन सम्पन्न हुआ.जिसमे कई गणमान्य लोगों ने शिरकत की.
काफल ट्री की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में एसपी सिटी अमित श्रीवास्तव,खाद्य नियंत्रक कुमायूँ ललित मोहन रयाल,श्री विनोद सोनकिया,जनकवि बल्ली सिंह चीमा,साहित्यकार गंभीर सिंह पालनी,प्रसिद्ध रंगकर्मी जहूर आलम,वित्त अधिकारी श्रीमती रुचि श्रीवास्तव ,समीक्षक/ब्लॉगर अशोक पांडेय,हिंदुस्तान स्थानीय संपादक राजीव, डॉ सीएस जोशी, प्रोफेसर श्रीश मौर्य, पत्रकार जगमोहन रौतेला,ओपी पांडेय, दीप भट्ट,गणेश जोशी, दिनेश मानसेरा,हरीश पंत,लेखक दिनेश कर्नाटक,शिक्षक मनमोहन जोशी, पृथ्वी लक्ष्मी राज सिंह,रीता रौतेला, मीनाक्षी पांडेय, रक्षित पांडेय, सहर्ष पांडेय,,उदित उपाध्याय,सुनील पंत, हर्षवर्धन वर्मा,गणेश मर्तोलिया, रक्षिता रौतेला,अपर्णा,अरविंद डंगवाल,पंकज उप्रेती,ललित कांडपाल,अजेयमित्र बिष्ट, प्रशांत सागर सहित साहित्य,कला से जुड़े कई लोगों ने प्रतिभाग किया.
पुस्तक लोकार्पण के साथ ही उपन्यास पर विस्तृत चर्चा हुई जिसमें वक्ताओं ने उपन्यास को हालिया दौर का महत्वपूर्ण दस्तावेज बताते हुए कहा कि लेखक अमित ने सरल और ग्राह्य शब्दो के साथ अपनी बात कही है.
उपन्यास पर प्रकाश डालते हुए ललित मोहन रयाल ने कहा कि हमारे देश मे पुलिस फोर्स की भारी कमी है जिसके चलते पुलिस को कई काम एक साथ करने पड़ते हैं उन पर कई तरह के दबाव होते हैं पुस्तक में बखूबी उनकी परेशानी को ठीक से सामने लाने में कामयाब हुई है लेखक ने उनकी दिक्कतों को समझा है और उसे उजागर करने का साहस किया है.
विनोद सोनकिया ने कहा कि जिन लोगों पर आम आदमी की सुरक्षा की जिम्मेदारी है उनकी दिनचर्या बदलने की कोई सरकारी कवायद नहीं हुई उन्होंने कहा कि आज से 30 साल पहले जिन परिस्थितियों में इन लोगों को काम करना पड़ता था आज भी स्थिति बदली नहीं है पुलिस रिफॉर्म्स पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि यह विडम्बना ही है कि यूपी के पूर्व डीजीपी को सुप्रीम कोर्ट जाकर पुलिस सुधार की गुहार लगानी पड़ी,उसके बावजूद कोई सरकार इन रिफॉर्म्स को लागू करने में कतराती रही.
बल्ली सिंह चीमा ने कहा कि कभी लगता ही नहीं कि कोई पुलिस विभाग का अधिकारी कर्मचारी अपने जॉब के इतर लेखन जैसा कार्य कैसे कर लेता है,क्योकि समाज मे पुलिस को बाई नेचर कठोर समझा जाता है.
लेखक अमित श्रीवास्तव ने पुस्तक के बारे में बात करते हुए बताया कि उन्होंने कोशिश की है कि आम आदमी के जेहन में जिस तरह की छवि बना दी गई है असल मे वह ऐसी नहीं है सभी को समझना होगा कि पुलिस कैसे काम करती है किन किन परिस्थितियों से उनको जूझना होता है, इन्ही बातों को उपन्यास के माध्यम से रखने को कोशिश की है.
अशोक पांडेय ने कहा कि अमित की लेखन शैली काफी संजीदगी लिए है हालिया उन्होंने इस तरह का उपन्यास नहीं देखा,उन्होंने कहा कि लेखक ने लगभग सभी क्षेत्रों को उपन्यास का अंग बना बात रखी है यह एक संवेदनशील व्यक्ति ही कर सकता है.
गंभीर सिंह पालनी ने उपन्यास के कुछ उद्धरण पढ़ते हुए कहा कि लेखक की भाषा पर पकड़ साफ झलकती है साथ ही बोलचाल में आने वाले शब्दों का प्रयोग काबिलेतारीफ है ही यह लेखक की पकड़ को दर्शाता है.
समापन पर अंतिम वक्तव्य एसपी सिटी अमित श्रीवास्तव ने दिया उन्होंने कहा कि पुलिस की छवि जैसी बना दी गई है वह वास्तव में वैसी नही है पुलिस में काम करने वाले लोग भी आम लोगों के बीच से ही आते हैं उनके लिए भी उसी तरह की समस्याएं सामने होती हैं जैसे आम लोगों की,अपवाद हर जगह होते हैं,लेकिन जिस तरह की नकारात्मक छवि पुलिस के लिए बना दी गई है,उसे सम्वाद के जरिये ही बदला जा सकता है,कहा कि साथी लेखक अमित श्रीवास्तव के उपन्यास से सकारात्मक संदेश जाएगा . संचालन काफल ट्री के गिरीश लोहनी ने किया.
ओ पी पांडेय @
हिलवार्ता न्यूज डेस्क
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फ़ोटो साभार.
जगमोहन रौतेला .
सहर्ष पांडेय .